सरकारें
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याद रखना
'सरकारें' बेईमान होती हैं
ठीक ठगों की तरह-
'वोट देने के बाद पता लगता है'।
याद रखना
'सरकारें' चलती हैं
ठीक हाथियों की तरह-
'डर दिखाकर सब कुछ खा जाती हैं,
लोगों के लिये केवल बेवकूफी छोड़ती हैं'।
याद रखना
'सरकारें' 'जोड़ती कम हैं,
तोड़ती ज्यादा हैं
लोगों को भी, भावनाओं को भी',
टूटे हुये धागे में जोड़ व गाँठ की तरह।
याद रखना
'सरकारें' समस्यायें सुलझाती हैं
मगर उलझनें उलझाती हैं,
उलझे हुये धागों की तरह-
'जिसमें एक खींचें तो दूसरा भी खिंच जाता है'
और उलझन बरक़रार बनी रह जाती है।
याद रखना
'सरकारें' 'सुधार कम,
सुधार का दिखावा ज्यादा करती है,'
दुल्हन के मेकअप की तरह।
याद रखना
'सरकारें' बदलती तो हैं
'मगर सूरतें, सीरतें नहीं'।
✍️ गोपाल 'जिगर'
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I am spiritual. Because passion for huma... read more
बनते देश कलिङ्ग-से
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उलझन वाद-विवाद की, पैदा करे विवाद।
तन्तु फूटते द्वेष के, फलते युद्ध, फसाद।।१।।
शान्त सुरों की शान्ति में, द्वेष उगाये वैर।
देश बने सीमा बने, घुटती रहती खैर।।२।।
कूटनीति का राज पथ, ताज रखे निज हाथ।
सिंहासन आरूढ़ हो, लेकर जनमत साथ।।३
राजनीति के खेल में, राजा चलता चाल।
रङ्ग घोल निज स्वार्थ का, करता खड़ा बवाल।।४।।
चौसर नेता खेलते, दंश झेलते देश।
युद्ध बड़ा मुख खोलता, बढ़ता जाये क्लेश।।५।।
सैनिक जनता राज की, जन-मानस का राज।
आपस के हर स्वार्थ से, सजता जाये ताज।।६।।
जन-मानस वश राज हर, छेड़े भारी जङ्ग।
सीमा पर सैनिक मरे, परिजन सहमें दङ्ग।।७।।
युद्ध पसारे मौत को, ताण्डव करता काल।
त्रास दहाड़े जोर से, दृश्य रचा विकराल।।८।।
विभीषिका का शोरगुल, छाये चारों ओर।
रुदन पछाड़े धीर को, सजा युद्ध को घोर।।९।।
शस्त्र गोलियाँ बम चले, सीमा जलती आग।
सैनिक पाते वीरगति, उजड़े घर का बाग।।१०।।
जान-माल की हानि हो, बंजर होता देश।
हृदय विदारक चीख भर, डायन खोले केश।।११।।
आयुध युद्धों में हँसे, बाँटे मौतें साथ।
बनते देश कलिङ्ग-से, विभीषिका के हाथ।।१२।।
✍️ गोपाल 'जिगर'
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माँ
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माँ ईश है माँ खुदा है,
माँ नाजों भरी ममता की अदा है
निज अङ्क से पिलाती दूधिया सुधा है
माँ ईश है माँ खुदा है।
माँ नींद है माँ सुकून है,
माँ फूलों से बनी सेज का एहसास है
स्वर्ग से उतरी लोरी का स्वर खास है
माँ नींद है माँ सुकून है।
माँ प्रेम है माँ दुलार है,
माँ बहार है खुशियों की धार है
बच्चों में किलोल की फुहार है
माँ प्रेम है माँ दुलार है।
( शेष अनुशीर्षक में पढ़ें )
✍️ गोपाल 'जिगर'
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दण्ड बिना क्या धाक!
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'मैला मन' मैला रहे, हो सीरत का मैल।
प्रेम भरी फटकार को, नहीं मानता बैल।।
गोला-लाठी दुष्ट का, करती सही इलाज।
पैर-भुजा को बाँधकर, बदले बुरा मिजाज।।
दुम टेड़ी कुत्ता रखे, कर्कश बोले काक।
सीरत बसती दुष्टता, "दण्ड बिना क्या धाक"।।
दुष्ट पड़ौसी पाक-सा, काज करे नापाक।
नाम खुदा का पाक ले, करता रोज मजाक।।
समय नहीं अब डाँट का, हुआ जरूरी दण्ड।
बाँह मरोड़ो दुष्ट की, तेवर दिखा प्रचण्ड।।
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✍️ गोपाल 'जिगर'-
ग़ज़ल
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कुछ असर हो गया बा-असर आँखों से
कुछ बदल दिल गया बा-ख़बर आँखों से
दर्द की है ज़ुबाँ शायरी अर ग़ज़ल
ख़ून बहने लगा तर-बतर आँखों से
ग़म-ज़दा हाल में कौन कितना मरा!
देखलो तुम नज़र भर गुज़र आँखों से
कुछ परिन्दें गये छोड़के सर-ज़मीं
राह देखे शज़र दर-बदर आँखों से
एक तारीक की सूरतें लाख हैं
देखलो तुम उन्हें बा-ज़रर आँखों से
लाख कुर्बानियाँ अब न जाया करो
मार मक्कार दो तुम ज़फ़र आँखों से
बात बिगड़ी जलाती रही है जिगर
लाख अरमान टूटे सिहर आँखों से
है अँधेरा जहाँ रौशनी हो वहाँ
नूर मख़्लूक़ पाये 'जिगर' आँखो से
✍️ गोपाल 'जिगर'
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ग़ज़ल
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रंग कच्चे सभी कल उतर जाएँगे
राह सच्ची पकड़ हम भी घर जाएँगे
झूठे महताब ख़ुर्शीद बनते नहीं
पर फ़ज़ा में ज़हर से ठहर जाएँगे
साथ तुम्हारे कफ़-ए-दस्त में ज़ीस्त है
हाथ खाली ख़बरदार कर जाएँगे
घाव पे घाव नासूर से कम नहीं
राह तक मौत की तन बिफर जाएँगे
रौनकें हर हज़र की हुई गाँव में
गाँव सारे हमारे किधर जाएँगे!
रहनुमाई उसूलात की गुम हुई
लोग खुदगर्ज़ घर-घर बिखर जाएँगे
चैन आह-ए-'जिगर' को न आया कभी
चाह आमीन की अब सँवर जाएँगे
✍️ गोपाल 'जिगर'-
देश
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ठौर बिना यह जग है झूठा।
देश दिलाये ठौर अनूठा।।
देश मनुज का ठौर-ठिकाना।
गुजरे जीवन दौर सुहाना।।१।।
रोजी-रोटी हक आजादी।
सब पाते घर सँग आबादी।।
मिलती सबको शिक्षा-दीक्षा।
तङ्ग करें कब! कड़ी परीक्षा।।२।।
हाथ देश का सिर पर रहता।
प्रेम बड़ा निज भू का मिलता।।
कभी न देते दस्तक खतरे।
हर्षित रहते शोणित कतरे।।३।।
( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें )
✍️ गोपाल 'जिगर'
देश-वयोधा सैनिक बनते।
जान हथेली पर ले चलते।।
अरि को नाकों चने चबाते।
निज बल का लोहा मनवाते।।४।।
देकर अरि को हार करारी।
सदा बढ़ाते आन पियारी।।
"सैनिक सीमा विधि का शासन"।
नागरिकों का है 'सुख आसन'।।५।।
करना जाति धर्म के झगड़े।
ठीक नहीं बढ़ते हैं लफड़े।।
भङ्ग एकता फिर होती है।
मति शातिर ईर्ष्या बोती है।।६।।
नाश दया का होता जाये।
रंजिश हो शैतानी भाये।।
शान्ति घरों की खोने लगती।
आग मनों की तेज भभकती।।७।।
बसे जहाँ जन-जन में गुरुता।
अक्षय रहती है सम्प्रभुता।।
शान्ति प्रगति मय भाव दया का।
करता नाश अराजकता का।।८।।
देश जिन्हें मिलता ऐसा है।
चैन उन्हें जन्नत जैसा है।।
भाव बड़े भर मानवता के।
छोड़ो लक्षण दानवता के।।९।।
✍️ गोपाल 'जिगर'
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कर दो तन्त्र सुराज
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चौकस रहे जवान हर, खुद को जमा सिवान।
मान रखे निज देश का, बनकर वज्र समान।।
रहे सुरक्षा देश की, जन-जन हो स्वच्छन्द।
खेत गली बाजार हर, सरसे सुख मकरन्द।।
सैनिक सीमा सरवरी, सम्विधान सन्धान।
सदा सबल सरकार के, चार सशक्त कमान।।
हम भारत की शान में, करें सदा सहयोग।
बहा लहू प्रस्वेद सब, करें सुखों का भोग।।
ऊँच-नीच सब छोड़कर, सारे बनों महान।
जाति धर्म के भेद में, नहीं घटाओ मान।।
सर्वोपरि रख देश को, सारे करो सुकाज।
देशभक्ति का भाव भर, कर दो तन्त्र सुराज।।
✍️ गोपाल 'जिगर'-
मौन सवाली हो गया
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मौन सवाली हो गया, बनके बड़ा नवाब।
गप्पू का तमगा हटा, देता नहीं जवाब।।
सीना छप्पन इंच का, नहीं ठोकता आज।
मुद्दों पर करता नहीं, बातें अब सरताज।।
लेकर टेलीप्रॉम्पटर, करता मन की बात।
बात परीक्षा की करे, तथ्य बता विज्ञात।।
टैक्स नया जी.एस.टी, बना हुआ तलवार।
भाव बढ़ा हर चीज का, घूम रहा सरदार।।
ख्वाब दिखाकर छल किया, वोट बटोरे खूब।
जनता पागल हो गई, दम्भ सरोवर डूब।।
✍️ गोपाल 'जिगर'
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ग़ज़ल
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शौक को शौक रखिये लगाओ ना दिल
हर मजा लूटिये पर लुटाओ ना दिल
बात कोई बुरी से बुरी है कहाँ
देखिये तुम ख़ुदी को छिपाओ ना दिल
बद्दुआ तुम न कोई कभी लीजिए
कर परेशाँ किसी को दुखाओ ना दिल
हर्फ़-अन्दाज़ क़त्ताल के हाथ है
आदमी पे ग़ज़ब तुम ढहाओ ना दिल
ख़ूबियों से चमकती नज़र है जहाँ
तुम वहाँ पे बुराई सजाओ ना दिल
है दवा-दारू उल्फ़त दुआयें ख़ुदा
नेक बनके अभी झिलमिलाओ ना दिल
धर्म सारे बदन के हुये हैं बला
प्यार को तुम 'जिगर' में बसाओ ना दिल
✍️ गोपाल 'जिगर'
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