तुमने कुछ कहा नहीं, पर फिर भी मैंने सुना
तुम्हारी खामोशी भी मुझे सुनाई देती है,
तुम चुप रहकर भी बहुत कुछ बोल जाते हो
और मैं वो सब कुछ सुन लेती हूं..
जो तुम अधूरा छोड़ जाते हो..
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तेरी इबादत में मेरे ये मासूम अल्फाज़ है
बेज़ुबान हुँ मैं और मुझमें तेरी आवाज है-
तेरी आवाज पाजेब की तरह खनकती है मेरे कानो में,
लगता है जैसे जी रहा हू
किसी मदहोश फ़िज़ाओं की आफसानों में,
दूर जाने की कोशिश भी करू अगर तुझसे अनजाने में,
पल में ये दिल खींचा चला जाता है तेरी ओर
जैसे कोई ढोर हो तेरे दस्तानों में,
तू करले क़ैद मुझको अपने आसमानों में,
ये दिल अब मेरा न रहा, ये धड़क रहा है तेरे सीने में,-
तोड़ दिया सब वादों को,
भूल गए संग बीती यादों को।
मौत भी नही अब रोक रही,
देख जिस्म में ढलती सांसों को।
दिखती धुंधली परछाई अब मेरी,
बिखरे पड़े हैं चैन अब टूटे जज्बातों में!
कैसे छुपाए कोई बताओ!
खामोश पड़ी जेहन की हर बातों को।
रोक रहे मौसम, हर दिन यहां
नही बदलती दिन, अब रातों को।
कहां दिल में मस्तिया लम्हों की,
मिटा दिया लबों ने बोलती आवाजों को।
तोड़ दिया सब वादों को,
भूल गए संग बीती यादों को।...-
सुनाे...जिन बतॆनाें के आवाज़ सुन
आप बे-वज़ह ही परेशान हाे,रहें हाे साहब.!
सच...इसी बतॆनाें कि खनक़ सुन
मासूम चेहरें पर मुस्कान आ,जातें हैं साहब..!-
ये रास्ता मुझ से कहता है कि
हररोज तुम्हारी और तुम्हारे साथी की आवाज सुनता हू में
कभी किसी दिन तुम भी ठहरकर
मेरी आवाज भी सुन लो !
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आवाज लगाई दोस्तो ने घर के बाहर
गुमनाम कहा मिलेगा ,
अंदर सी आवाज आयी यहाँ नही
शम्भू के चरणो मे मिलेगा।-
आज जब शाम को
आंखो से नही पर
कानो के जरिए मिला
तो समझ आया के
कुछ खूबसूरतियों से रूबरू तो
सिर्फ ये कान ही करवा सकते है हमे
और कोई नही !-
चुप से चार कोने..
है इक कोने का कोलाहल,
सजे हुवे चार कोने..
है बिखरा इक कोने का रूप,
चालीसों मुस्कुराहटो में चार कोने..
है रोता इक कोना हरदम,
रोशनी से भरे चार कोने..
है राख चारो ओर इक कोने की,
कमरा औऱ मन !!
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