जज़्बात अधूरा रह जाता है, कोई ख़्वाब अधूरा रह जाता है।
ख़ुद-ग़रज़ी की इस होड़ में, अक्सर साथ अधूरा रह जाता है।-
जैसे ख़्वाब को ख़ुद में दुनिया संजोने की आदत है।
मेरे... read more
वो होती, मैं होता, और खुशियों का समा होता।
ना ग़म होता, ना सिसक होती!
ना आंसुओं का आँखों से तक़ाज़ा होता।-
काश! उसके वादों पर, ना इतना ए'तिबार करता।
ना मानता उसे ख़ुदा अपना, ना कभी उससे प्यार करता!-
थक गए हैं दीदार-ए-यार की इंतज़ार में अब।
मिलन की रुत हो अगर तो, हमें भी इत्तिला देना।-
कुछ मुलाकातों की याद अब भी बाकी है।
बहुत कुछ कह दिया था उसने! पर कुछ बात अब भी बाकी है।-
मेरी शख़्सियत को वो बदनाम कर गया है।
मेरा हमदर्द!, रुख़्सत होकर मुझे सर-ए-'आम कर गया है।-
उसकी मशहूर कहानी का मैं भी एक नाकाम किस्सा रहा।
वो रहा किरदार खास और मैं मामूली सा एक हिस्सा रहा।-
उसकी बातों का अब मुझ पर कोई असर नहीं होगा।
वह अगर मिल भी गया तो दोनों का गुजर-बसर नहीं होगा।
तन्हाई का तौफ़ा थमाकर, बेघर कर गया था वो मुझे।
अब किसी ठिकाने की उम्मीद में, मेरा! कोई शहर नहीं होगा।-
काश! कोई दरमियान ना होता,
तू खफा होता पर, जुदा ना होता।
आहिस्ता-आहिस्ता भर जाती है हर दरार रिश्तें में,
अगर तू साथ होता, तो दर्द भरा हादसा ना होता।...-
तुम ख्यालों को शब्दों में पिरो देती हो।
जब लिखती हो तो आँखें भींगो देती हो।...-