जुनून-ए-जुस्तजू किसकी , कमी क्या 'आरजू' में थी
शिकन पैदा हुई बेहतर , 'खुशी' क्या ख़ाक होती है-
कुछ 'कम' को वज़न देती नही आरजू 'फिराक़'
सीने में दर्द 'कल' का लिये , फिरता दौर 'आज'-
फिर 'सुलह' को तमाम रखने थे
मशविरे सुबहो - शाम चखने थे
आरजू भी 'शिकन' जरूरी थी
'दाम' रिश्तों के जो परखने थे
'मैं' भला कर नही तेरा सकता
जो बुरे बन गए वो 'सपने' थे
ज़िन्दगी है तमाम 'किस्सों' की
दर्द 'हिस्से' तमाम रखने थे
हश्र में ज़िन्दगी यही है 'तलब'
सर 'शराफत' के सब मुकदमें थे-
मुझमें भी तुझमें 'वो' है , तुझमें भी मुझमें 'मैं'
हक़ आरजू का कोई , बेचैन बोरिया बिस्तर-
दिल की ये आरज़ू है , फक्त तेरे नाम से जानी जाऊं
सांस तुम्हारी चलती रहें और धड़कनें मेरी धड़कती रहें .....!!!!!-
_राहत_
तू हमारा ना हुआ
अब ये गम नही...
बस दर्द-ए-दिल से
राहत की आरज़ू है-
"शायद मालुम नहीं उसे.,
क्या मेरी हसरते आरजू हैं.!
वो यों ही मुझे चाँद तारों के.,
किस्से सुना रहा हैं..!
क्या बताऊँ उसे.
इस दिल की चाहत क्या है..!
बस इतना करदे मेरे मोला.,
ईमान की रोटी नसीब हो मुझे..!!"
-Bharat Kumar Vaishnav
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पिघल रही है तेरे इश्क़ के मानिंद हया,
आबरू बाकी आरज़ू की आज रहने दो !-