कहाँ मिलेगी ज़िंदगी ?
ताउम्र जोड़े सामानों में
या बनते मिटते मकानों में ,
भूली बिसरी बातों में
या पीछे पड़ी यादों में ।
जागती तन्हाई में
या सपनों की गहराई में ,
तन के उभारों में
या मन के विकारों में ,
जन्म की ज्योति में
या मृत्यु की ज्वाला में ।
कहाँ मिलेगी ज़िंदगी ?
ना मुझसे पहले
ना मेरे बाद है ज़िंदगी
हरदम जो साथ है मेरे
बस वही एहसास है ज़िंदगी ।
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Writing
Exploring ...
If you're here... it's your own responsibility
किसी भी प्रकार ... read more
" सदियों पुरानी प्रेम की राहें
लीक की खाईयाँ खींच चुकी हैं
प्रेमी समा जाते है इनमें
क्योंकि
बड़े हादसे
पुरानी सड़को पर
होते है। "-
जो हम दोनों में क़रार है
वहीं तो प्यार है...
( अनुशीर्षक में जारी...-
" खिड़की के पास "
दोहरी ज़िन्दगी जीती है खिड़कियाँ।
टिकी रहती है एक जगह
भीतर से आस का धोखा बनकर
बाहर से ताक झाँक का मौका बनकर
प्रसन्नता में खोल दी जाती
पीड़ा में बंद की जाती ।
( आगे अनुशीर्षक में ....
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यूँ चुपके से
तुम आये
हम कुछ झिझके,
कुछ घबराए
ओढ़नी थामे , ओट से झाँके
कुछ हँसते
कुछ शर्माए
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इस प्रीत में जग से विरक्ति चाहता हूँ
हर उफ़नती श्वास संग, तेरी अनुभूति चाहता हूँ।
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"स्मृतियां"
क्या सूरज, चाँद , सितारों , धरा , गगन, जलधारों के पास भी होगी स्मृतियाँ ?
क्या संजोई होंगी उन्होंने भी कुछ यादें ? , स्मृतियों में डूबकर बिताये होंगे कुछ क्षण ?
या वे केवल साक्षी है ?
जीवन की गाथा के ,
मृत्यु की मर्यादा के ।
क्या सूरज को याद होगी कर्ण की पीड़ा ?
क्या तारों को याद होगी कृष्ण की क्रीड़ा ?
क्या चाँद को याद होगा बुद्ध का ज्ञान ?
क्या धरा को याद होगा सीता का सम्मान ?
क्या समुंद्र को याद होगी रावण की व्याधि ?
क्या अग्नि को याद होगी सती की समाधि ?
क्या निर्जीव समझूँ उन्हें , या कुछ सजीवता है उनके भीतर ?
क्या उन्हें आदेश मिला है बस मौन धरे , निरंतर कर्तव्य की ओर अग्रसर ?
क्या कोई अंतर नहीं बचा है उनकी जीवन देती स्थिरता में और भाव रहित निष्ठुरता में ?
क्या उन्हें स्मृतियों की समृद्धि प्राप्त है , किंतु अभिव्यक्ति का आशीर्वाद नहीं ?
क्या केवल मनुष्य ही सम्मानित है स्मृतियों के वरदान से , अभिव्यक्ति के अभिमान से ?
प्रज्ञा "प्रांजली"
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" मधुमास "
मैं मिलिंद , तुम मंजरी
मैं अधीर नर , तुम धीर नारी
पिपासा , तृप्ति को व्याकुल
उमंग , प्रखर - नवलकारी
मधुमास की आगमन बेला
प्रीत बने , सृजनकारी
प्रेम , प्रदीप्त प्रति शिरा में
अब प्रणय की बारी ।-