"जीवन का ये कड़वा सच
पीकर चल तू इससे न बच
डर न मन,उठ तो सही
हार ही मिलें,उम्मीद तो नहीं
कोरे काग़ज़ सी जिंदगी
स्याही से इतिहास तो रच
मेहनत तेरी ये लिख रहीं
लाचार ही रहें,उम्मीद तो नहीं
कौन समझे,खुद से रूठे
अपने भी कैसे बने गए झूठे
बातें जिसकी मिलीं कहीं
अब मिले वहीं,उम्मीद तो नहीं
यहां चलते-चलते गिरना,
फिर गिरकर भी संभलना
कदम लड़खड़ाते,राह डगमगाते
दुखों से घिरे,उम्मीद तो नहीं"
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