रात का टुकडा बनकर रह गया हूं सुबह के इंतजार में...
इक सुबह तो मेरे लिये भी होंगी जिसकी शाम ना आये....-
मैं परिंदा आज़ाद हूं,
पर रहता पिंजरे में हूं ।
हर पल को ख़ुशी से महसूस करता हूं,
पर हर घड़ी मर-मर के जीता हूं।
मैं परिंदा आज़ाद हूं,
पर रहता पिंजरे में हूं ।।
यूं तो आसमां में ख़ूब पंख फैलाए उड़ता हूं,
पर ज़मी पर क़दम फुक-फुक के रखता हूं।
मैं परिंदा आज़ाद हूं,
पर रहता पिंजरे में हूं ।।
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क़फ़स में क़ैद कर रूह मेरी, वो ख़ुद पे इतरा रहा है,
मैं हूं आज़ाद परिंदा, खुला आसमां मुझे बुला रहा है।-
दिल में इश्क़❤कुछ इस तरह जिंदा है,
जैसे खुले आसमान में आज़ाद परिंदा है..-
लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं
क्या सोचते हैं
यूँ तो बहुत मैंने सोचा होगा
ना पता था तब, ना अब, ना ही होगा
जानते हुए भी मैंने ये सोचा होगा
पर सोचता हूँ मैं...क्या,
कमाल है कि ये मैंने कभी
इतनी शिद्दत से ना सोचा होगा
बाहर से आज़ाद हूँ
पर भीतर से ही बंधा हूँ मैं
तो खुला आसमां भी फिर क्या करे
जब पंछी को ही
अपने पंखों का ना पता होगा.....-
ख़ौफ़ हर शख्स ही, उस से खाता बहुत है,
खेल अकेले ही, वह तो खेल जाता बहुत है,
टूटा है कई बार वो, सुनकर तंज़ ज़माने के,
बर्फ़ सा चेहरा तभी, सबको दिखाता बहुत है,
बसर कर गई है, ये तन्हाई ज़िगर में उसके,
तभी भीड़ से, ख़ुद को वो छिपाता बहुत है,
समेट रक्खे हैं, कई तुफां दिल की गहराई में,
तभी लहरों से अक्सर, वो टकराता बहुत है,
गुलाम सोच का, न कभी गुलाम हुआ है वो,
तभी आज़ाद परिंदे-सा नज़र आता बहुत है,
चीर तो दे वो, अड़ियल सागर के सीने को भी,
पर मछलियों की आह से, वो थर्राता बहुत है,
गिरा के रख दे, गिरे हुए को उनकी निगाहों में,
देकर दर्द बेपनाह, फिर वो पछताता बहुत है।-
दुनिया का दस्तूर हैं जो रोते है उन्हें ये दुनियां वाले बहुत रुलाते हैं,,,
जो हंसते हैं उन्हें भी रुलाने के बहाने ढूंढ़ते है,,
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