चमन ख़त में ही, सजा रक्खा था,
मैंने दिल को, गुल बना रक्खा था,
दिल के आशियाँ में उसे लाने को,
क़ल्ब कदमों में, बिछा रक्खा था।-
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इश्क़ में रुसवाई, वो सह न पाई,
इंतिहाई दर्द था, पर कह न पाई,
ज़िल्लत मिली, उसे मेरी उल्फ़त में,
तब भी मेरे बिन, वो रह न पाई।-
देकर गुलाब यूँ, नई रिवायत इश्क़ में बनाते क्यूँ,
अपनी इन हरकतों से, शर्मसार मुझे कराते क्यूँ।-
लफ्ज़ दो ही थे, पर दिल फ़िगार हुआ मेरा,
जो दर्द-ए-इश्क़ का, उनसे क़रार हुआ मेरा,
सोचा... देख ज़ख्म मेरे, कुछ तो रहम खायेंगे,
ये मंसूबा उसी इक पल में, बेकार हुआ मेरा।-
वो चाँद है ज़मीं का, और मैं इक अंधेरा साया,
रू-ब-रू जो आए , तो ज़र्रा ज़र्रा जगमगाया।-
पैग़ाम मुहब्बत का, पढ़ाया फूलों ने,
दिल को दिल से, मिलाया फूलों ने,
कांटे तो मिले कई, सफ़र-ए-इश्क़ में,
कांटों संग मुस्काना सिखाया फूलों ने।-
दिल के आशियाने में, दीवाना रहेगा,
शमा जहाँ रहेगी, वहीं परवाना रहेगा,
उठाना कदमों को, जरा सोच के तुम,
इन कदमों तले ही मेरा ठिकाना रहेगा।-
छवि कान्हा की, बसी तोरे मन में,
तो ढूंढत है क्यों तू, उसे उपवन में,
नटखट नन्हा सा, वो बाल गोपाल,
भरता कुलाचें हैं, हर घर आंगन में,
बाल सुलभ क्रीड़ा कर के मुस्काता,
तो कभी झूठे अश्रु बहाए आँखन में,
चपल चंचल नयनों से रोष जताता,
डपटे जो मैया, छिप जाता आँचल में।-