लाख मंसूबे बना ले दुश्मन सीमा पार से,
पर भाई को भाई से अलहदा कर नहीं सकता,
न घबरा दोस्त, वक़्ती है हवा नफ़रत की,
मुहब्बत का शजर, इस हवा में मर नहीं सकता।-
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ID-Pankaj Bist
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लड़कियों के दिमाग से ही दुनिया खा रही है,
और लड़कों को इज्ज़त नहीं रास आ रही है,
कितना भी कमाल कर दे भगवान तेरे अंदर,
फब्ती कसने की आदत तेरी नहीं जा रही है।-
तेरे वास्ते ही मैं सदा मुस्कुराती हूँ,
तू ख़ुश हो, इसलिए गुनगुनाती हूँ,
हुनर नहीं कोई, ये मुहब्बत है मेरी,
अपनी चाहत ज़माने को दिखाती हूँ।-
नहीं करनी है प्रेम, शांति और वो सद्भाव की बातें,
बेकार हैं करना, अब इन जैसों से लगाव की बातें,
मुहब्बत की भाषा को, वो ज़ाहिल क्या ही जानेंगे,
जिनको समझ आती हैं, केवल रक्तस्राव की बातें,
जवाब उन बुज़दिलों को, उनकी ज़ुबान में देंगे हम,
क्योंकि छोड़ दी हैं हमने भी अब, प्रेमभाव की बातें,
कब तलक करें हम ही कोशिशें, मेल - मिलाप की,
जब वो करते हैं अक्सर ही, बस अलगाव की बातें,
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-
अपनी मुलाक़ातों के सिलसिले, फ़साने बन गए,
जो दिखाए जल्वे तो, वो इश्क़ में दीवाने बन गए,
तोड़ के रस्में सभी, इश्क़ जब जताया उसने तो,
ज़माने भर की बातों के, वो फिर निशाने बन गए,
मिला के नज़र से नज़र, फिर फेर ली नजरें हमसे,
बुला के महफ़िल में, हमसे वो अनजाने बन गए,
अदावत जाने किस बात की, हमसे रखने लगे वो,
सुना है किसी और से, अब उनके याराने बन गए,
जो इबादत हमारे इश्क़ की, किया करते थे दिन रात,
अब उनके सीने में ‘रूही’, नए सनम-ख़ाने बन गए।-
हमने ख़्वाबों में, इक ख़्वाब सुनहरा देखा था,
जाने उसको कब से, दिल में ठहरा देखा था,
रिसता नहीं वो दर्द कभी, उसकी आँखों से,
पर दिल में हमने, घाव बड़ा ही गहरा देखा था,
ज़िंदा उसको जान के, ख़ूब सजाया था सबने,
हमने उस दिन, लाश के सिर सेहरा देखा था,
दिल ही दिल में, वो कितना चिल्लाया होगा,
पर उसकी बेबस क़िस्मत को, बहरा देखा था,
बिन बोले किसी ने ‘रूही’, छोड़ा दिल उसका,
तभी तो दिल में उसके, डर का पहरा देखा था।-
फूलों की उपमा मत देना,
कंटक चाहे तुम कह लेना,
दिल में मुझको न रखो तुम,
पर पैरों तले कुचल न देना।-
ज़ख्म काँटों के सबसे छुपाते हैं फूल,
दर्द सह के भी सदा मुस्कुराते हैं फूल,
शिकवा मुहब्बत में नहीं किया करते,
प्यार काँटों से, ताउम्र निभाते हैं फूल।-
यूँ ही नहीं ख़ुदा ने, हमें ज़मीं पर ऐसे मिलाया होगा,
कुछ तो ख़्याल, उसके दिल-ओ-ज़ेहन में आया होगा,
कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं, तुझसे मिलना मेरा इस जहाँ में,
इरादतन तुझको, मेरे दिल के क़रीब वो लाया होगा,
मिले कई यहाँ सफ़र में, और मिलकर जुदा हो गए,
बना हमसफ़र, मुश्किल राह को आसाँ बनाया होगा,
इक नया चमन इस ज़मीं में बसाने को, उस बाग़बाँ ने,
तभी तेरे दिल में, गुल मेरी मुहब्बत का खिलाया होगा,
उस जनम में, कुछ हमने करम अच्छे किए होंगे ‘रूही’,
तभी तो उसकी रहमत का फल, हमें मिल पाया होगा।-
इश्क़ की गहराई, काले चश्मे से नज़र आती नहीं,
जोड़ी तो जंचती है अपनी, पर तुम्हें क्यूँ सुहाती नहीं।-