भर हुंकार , आगाज़ कर
तू वीर है हार का प्रतिकार कर.....
नदियों को देख, शुद्ध नीर सा बन
तू वीर हैं, पहाड़ों को चीर पार कर...
ये रण क्षणभंगुर है, ना रुक
तू वीर हैं, प्रचण्ड प्रहार कर ....
सूर्य सा तप, चंद्र सा शीतल बन
तू वीर है, बलिदानों से श्रृंगार कर....
आश्चर्य तो ना होने के बहाने हैं
तू वीर हैं, विकृत को आकार कर....
हार एक व्यथा हैं, उठ संभल फिर वार कर......
तू वीर हैं, "विजय" को साकार कर....-
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मेरे वजूद को अब तलक महज़ एक तिनका बताती है ..
ऐ जिंदगी, तेरे कल की फ़िक्र मेरे आज को बहोत सताती है...
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झुक जाऊंगा सजदे में तेरे यूहीं मै
पर डर है, कही तू ख़ुदा हो गया तो....
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मन के अंधेरो में चिराग़ जलने तो दो
आंखों में मेरी सपनों को पलने तो दो..
गिरने के डर से ही बैठा हूं कब से
उड़ान जूनून से अब थोड़ी भरने तो दो..
नाकामयाबी ही नही इन लकीरों में
मुझे कोशिशे तमाम करने तो दो..
दिलकश सुकून के पल नसीब होंगे
बस गम-ए-शाम ये ढलने तो दो..
छोटे बड़े औेदे सारे पा लूंगा
किमत ख़ुद की पता चलने तो दो..
शखसियत अपनी होनहार लिख दूंगा
कमियां मुझे मेरी खलने तो दो....
सुना है बहोत मुश्किलें है राह में
इक इक करके सबसे मिलने तो दो..-
झूठा नहीं मै सच्चा बताता रहा हूं ख़ुद को
मै आईना ही दिखाता रहा हूं ख़ुद को...
रिवाज़ो में लिपटे सबक सिखाते गए वो समझदारी का
मै अदब में ही झुकाता रहा हूं ख़ुद को...
उम्र भर चलता रहा सिलसिला आजमाइशों का
मै खौफ में ही मिटाता रहा हूं ख़ुद को...
कहना क्या गैरो से उन कामयाबी के अफसानों का
मै अपनो में ही घटाता रहा हूं ख़ुद को...
बेरुखी ही है यहां दौर बदलता नही आलमो का
मै ज़ख्म ही लगाता रहा हूं ख़ुद को...-
तुझसे जुड़े आशियाने सारे मेरे पर,
कभी नज़र में तेरे था ना मेरा घर..
यकीं था मुकम्मल ना होगा तू ,
फिर भी ढूंढ़ता रहा तुझे दर दर..
तक़दीरे भी कही बयां ना थी जो,
मिटती पल में, ठहरती पल भर..
दिन भी आता नही वो जहां ख़त्म हो,
बरसो से चलता आ रहा सफ़र..
मिन्नतो से भी हासिल न हो पाया तू,
अब मिल एक घडी को तेरी रज़ा हो गर..-
रिश्ते कुछ पक्के से है इस मिट्टी से मेरे,
जब भी इसे छूता हूं ये दिलकश सुकून देती हैं...-