आज कल लोग कहते हैं कि मैं बहुत शांत हूँ |
पर उनको क्या पता
कि मैं एक लूटा़ हुआ मकान हूँ |
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तुम हमें याद नहीं करते
सुनी सुनाई बात पे हम विश्वास नहीं करते-
आजकल वो हमारी बातों का मतलब ना समझते हैं ना समझने की कोशिश करते हैं।
लगता हैं जैसे हमसे जुड़ा हुआ उनका
मतलब अब पूरा हो गया हैं।-
उस के अदू बहुत हैं
लफ़्ज़ों में जिस के उल्फ़त और नर्मी हैं-
दब जाते जो 'आवाम' के हैं
मुद्दे जो होते 'काम' के हैं
शिक्षा में मोल न 'समता' का
ममता भी माया 'नाम' से है
सरकार की हम 'तरकारी' है
कट जाते भी 'आराम' से है
'बेहिस' कर देते दर्दो सितम
उड़ जाते पुर्जे 'कान' के हैं
होता भी वही जो होना नही
रस्ते मुश्किल 'आसान' के है
जितने चर्चे है 'कान्हा' के
उतने न 'सीता राम' के हैं
तन बिकता भी मन भी बिकता
मैं और मेरा सब 'नाम' के हैं-
आजकल कुछ रिश्ते यूं उलझ जातें हैं,
जैसे पतंग के मांझे उलझे हों।
बेवजह ही दिलो में यूं दरार पड़ जाते हैं,
जैसे मिट्टी के बर्तन टूटे हों।
संभालते-संभालते रिश्तों के मायने,
कुछ यूं बदल जाते हैं,
जैसे हकीकत में जिए हुए, हर लम्हे झूठे हों।
बसी बसाई बस्ती भी कुछ यूं उजर जाती है।
जैसे किसी नासमझ तुफां ने,
बेसहारा परिंदों के घर लूटे हों।
आजकल कुछ रिश्ते यूं उलझ जातें हैं,
जैसे पतंग के मांझे उलझे हों।............-
आजकल के बच्चे,
लगते बड़े कच्चे।
छोटी-छोटी बातों पर,
ऐसे है रूठते।
ना कोई समझ है,
ना कोई जिम्मेदारी।
इनको तो बस चाहिए,
mobile वाली दुनियादारी।
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बड़े मगरूर हो रहे हो,
ऐसा क्या मिल गया जो
बड़े मसरूफ रहते हो,
कभी हमारी कमी,
महसूस नहीं हुई क्या,
जो हमसे इतना दूर रहते हो...!!
💞❤️💓😌💓❤️💞-
आज कल कुछ ऐसे हो रहें हैं हम,
कि तुझे पाने की ख्वाहिश में,
शायद खुद को ही खो रहे हैं हम।-