अपने किये की अब सज़ा मैं पा रहा हूँ
उस पर यकीन कर अब पछता रहा हूँ
हर बात जो उसकी इस दिल से सुनी थी
ज़माने भर की ठोकरें अब मैं खा रहा हूँ
मरहम कहाँ लगता है कोई इस जहाँ में
मैं भी ज़ख्मों को नासूर अब बना रहा हूँ
ऐतबार ए इश्क़ कहीं तुमको डूबा न दे
इश्क़ से सबको मैं आगाह करा रहा हूँ
वो रहे सलामत मेरी ये दिल से दुआ है
परेशाँ हूँ बस ख़ुदा से गुहार लगा रहा हूँ
राह ए इश्क़ में जब ये हाल हो "मीना"
इश्क़ ला-ईलाज बीमारी है दोहरा रहा हूँ
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