जन्मेंजय सिंह बैस   (©जन्मेंजय|क्षत्रियRक्त)
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Joined 12 November 2019


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Joined 12 November 2019

माथे पे बिंदी,कान में झुमका और गले में दुपट्टा-
कमाल लगती हो।
सच कहूं ,तुम चश्में में बवाल लगती हो।

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वो कहने को तो मेरा कुछ नही लगता,
पर बिछड़ कर अब उससे मेरा दिल नही लगता।

काश वो आए एक रोज ख्वाब में भी
पर बिस्तर पे मेरा अब आंख नही लगता।

दिन के उजालों में मै सोचता था कि बदनाम हो गया हूं
उसके नाम से मै,
मगर अब अंधेरों में ये दाग, दाग नही लगता।

©—"जन्मेजय"

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जीवन के हर पहलू को लिखता हूं एकसाथ,
फिर दूसरी तरफ सिर्फ तुमको लिखता हूं।

एकतरफ़ लिखता हूं पूर्णिमा की चांद को,
फिर दूसरी तरफ तुम्हारी बिंदी लिखता हूं।

एकतरफ लिखता हूं सुंदर झील को,
दूसरी तरफ तुम्हारे आँखों की रति (सौंदर्य) लिखता हूं।

एकतरफ समेटकर लिखता हूं दुनिया की सारी खुशी,
दूसरी तरफ सिर्फ तुम्हारी मुखमंडल की हँसी लिखता हूँ।

इस नाप तौल के तराजू में हर तरफ़ तुम भारी हो,
मेरे जीवन में प्रिय मुझे तुम सबसे प्यारी हो।

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कितने भी बदल लो सफर में साथी अब,
वो एक न मिलेगा जो बिछड़ चुका है।

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आज नही तो कल सही
मिलेंगे तो जरूर हम ।

समय नही है अनुकूल
परिस्थितियों के बिखरे हैं शूल
हर मोड़ पर यहां घात है
तृष्णा है, रक्तपात है,

समय की ये मार सहेंगे हम
कुछ न लब से कहेंगे हम
चुपचाप इस पीड़ा को सह लेंगे
मुस्कुराते रहो प्रिय,तभी तो मन बहलेंगे

देखो एक तो जाति अनुकूल नहीं है
और एक जैसा कुल भी नहीं है
तुम समझो तनिक धैर्य धरो
ऐसे न मुख मोड़ो, न बैर करो

कल का जरा तुम ध्यान करो
कल की तुम सम्मान करो
कल फिर आएगा लेकर एक नया अलबेला
नए सुबह में नए जीवन का नया मधुर बेला

उस सुबह की प्रतीक्षा तो धैर्य रखकर करो प्रिय
उठो और आंसू पोछो, और मत डरो प्रिय
इस काल के कपाल पर खिलेंगे तो जरूर हम
आज नही तो कल सही, मिलेंगे तो जरूर हम—२

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शांति व प्रेम को ज्यादा और युद्ध व घृणा को कम लिखता हूं।
पहले लिखता था' मैं, अब एक होकर हम लिखता हूं।

पहले एक एक उंगली लिखता था,
अब एकसाथ मुक्के का दम लिखता हूं।

यदि कोई कह दे की स्वर्ग लिखो "जन्मेजय"
तो मां के कदम लिखता हूं।

मैं युद्ध को कम लिखता हूं..—२


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समस्त संसार में आपका सबसे बड़ा शत्रु मन है
और
यदि इसे नियंत्रित कर आपने साथ मिला लिया जाए तो इससे अधिक शक्तिशाली मित्र कोई नही।

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जो सुरक्षित नहीं है, उसका कोई भविष्य नही हो सकता।

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लगता नहीं मन हमारा अब कहीं
इस मन को बहलाया कैसे जाए.?

दिल बेजान पड़ा है सीने में देखो
बताओ तो इसको धड़काया कैसे जाए.?

आँखें हर जगह देखती हैं सिर्फ़ तुम्हें ही
वो भ्रम है ये आंखों को समझाया कैसे जाए.?

मैं, वो -उसके ज़ुल्फ़ें,बिंदी,पायल और मुस्कान
हो साथ में, इस सपने को सजाया कैसे जाए.?

ये बातें ये कल्पित-कल्पना-काल्पनिक ही तो है
इस काल्पनिक सपने से मैं को जगाया कैसे जाए.?
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श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुरूप कार्य करने चाहिए। क्योंकि श्रेष्ठ पुरुष जैसा व्यवहार करेंगे, तो इन्हीं आदर्शों के अनुरूप सामान्य पुरुष भी वैसा ही व्यवहार करेंगे।

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