तुम्हारे साथ जिया हुआ हर लम्हा मेरे साथ है,
पता है वो मुझे इतना अजीज क्यों है?
क्योंकि उसमें सिर्फ हम हैं।
उसमें ना कोई पाबंदी है ना कोई रिवायतें,
उस लम्हें में मेरे लफ़्ज मेरे है।
मेरे शब्दों को कुछ भी कहने की आजादी है।
और सबसे जरूरी बात ये कि,
तुम शुकून से मेरी हर बात सुनते हो।।
प्रतिमा..
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अगर तुम चुनो अपनी खुशी,
खोजों अपने अंदर की खूबसूरती,
तलाश करो इस भीड़ भरी दुनिया में,
अपनी पहचान तो कैसा रहेगा?
अगर तुम पायल बिंदी झुमके को छोड़,
किताबों से इश्क करो तो कैसा रहेगा?
अगर तुम गलत को गलत और सही को सही
कह सको तो कैसा रहेगा?
अगर इस नए जमाने के दौर में तुम पुराना सा
इश्क करो तो कैसा रहेगा?
हर बार तुम इस सभ्य समाज को तबाह होने से,
बचाती हो, इस बार खुद को बचा लो तो कैसा रहेगा!?
प्रतिमा..
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तुम मुझे अच्छे लगते हो।
जब मैं खुद को समाज के दायरे में कैद करती हूं,
कि मैं तुम्हें अच्छी लगूं।
तुम कहते हो तुम्हें किसी दायरे में कैद होने की जरूरत नहीं,
बेहतर है कि तुम अपने दायरे खुद बनाओ।
तब तुम मुझे और भी अच्छे लगते हो।।
प्रतिमा..
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तुम अपनी आजादी का जश्न,
कब और कैसे मनाओगी?
ये प्रश्न किसी औरत के मन में आना,
उसका आजादी की तरफ पहला कदम होगा।
तुम खुद के हुनर को कैसे संवारोगी?
हुनर तुम्हें अंदर से खूबसूरत बना देगा।
तुम जिंदगी की मुश्किलों से कैसे लड़ोगी?
जिन्दगी की जंग तुम्हें आत्मविश्वास देगा।
अगर तुमने खुद को कही खो दिया है?
तो उठो और तलाश करो खुद की!
क्योंकि तुम्हारी गुमशुदगी की रिपोर्ट,
कोई और नहीं लिखवाएगा।।
प्रतिमा..
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अगर कह दिया चले जाओ।
तो चले नहीं जाना।
मेरे पास बैठना,और चुप रहना।।
प्रतिमा..
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जिन्दगी एक पजल की तरह है..
अपनी सबसे अच्छी यादों से लेकर,
सबसे बुरे अनुभव तक...
हम हमारी जीवन की उन सब,
कभी न बदल पाने वाली घटनाओं के लिए..
किस्मत को कोसते है,
या फिर ईश्वर को शुक्रिया कहते है..
प्यार का पहला स्पर्श..
बच्चे का जन्म लेना..
पहले काम की पहली कमाई..
किसी को खो देना..
ये सभी पल या इस तरह की बहुत सी यादें,
ताउम्र हमारे साथ चलती है..
प्रतिमा..
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वो दिन कितना खूबसूरत था,
मैं अपने ही ख्यालों में खोई।
कभी ये पहनती कभी वो पहनती,
कभी बालों को बनाती कभी खुला छोड़ती।
आईने से तो जैसे दोस्ती हो गई हो मेरी,
क्योंकि मैं बहुत खूबसूरत लगना चाहती थी उसे।।-
तुम यहां हो!
जैसे उस दिन मेरे चेहरे को छुआ था और साथ रहने का वादा किया था।।।
मेरा सबसे बड़ा डर कि यह साथ छूट जाएगा और तुम चले जाओगे।
जैसे अंधेरे में रोशनी चली जाती है अंधेरा काटने का दौड़ता है, यह चाहता है यह तुम्हें मुझसे दूर ले जाता है, और उस अंधेरे में बस तुम्हारी बातें गूंजती रहती है।।।
पर मैं उस दिल के दर्द को महसूस कर सकती हूँ,उस में उम्मीद है और मुझमें भी।।
एक दिन काले बादल हट जाएंगे और उस अंधेरे में तुम रोशनी बनकर आओगे।।।
तब उजाला होगा मुझे गर्माहट मिलेगी। मुझे पता होगा कि तुम आए हो यहीं कही हो।।।
आज, कल और हमेशा।।
Pratima
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कभी-कभी मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब अपने कमरे से निकलकर जिंदगी और जमाने की कश्मकश से जूझती हूं ,तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब मैं अपने सारे काम खुद करती हूं खुद की मेहनत से कोई सफलता हासिल करती हूं, तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब एक अलसायी सुबह, एक कप कॉफी और कुछ किताबों के साथ घंटों बिताती हूं ,तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब अपने विचारों को किसी मंच पर लोगों के साथ साझा करती हूं, तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब मैं अपने किचन में अपनी पसंद का खाना पकाती हूं, तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब अपनी आसमानी साड़ी पहन कर खूबसूरत लगती हूं आईने में खुद को देखकर बार बार इतराती हूं, तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
जब मैं आंगन में लगे गुलमोहर से बतियाती हूं मुस्कुराते हुए उससे उसकी खूबसूरती का राज पूछती हूं, तब मैं खुद को आजाद महसूस करती हूं।
सुनो,जब तुम आजाद होती हो तब तुम दुनिया की सबसे खुश और खूबसूरत इंसान होती हो।
Pratima..
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जहां मोहब्बत हो जा के पूछो,
जिसको मिलना था!कब मिला है?
जहां भी दिल हो,उसे बता दो!
कि टूट जाना लिखा हुआ है।
जो टूट जाओ तो क्या हुआ दिल?
तू लाडला है संभाल लेंगे!
ग़म तो जन्मे है शिकवे दिल से ,
जिगर के टुकड़े है पाल लेंगे!-