अब मुझे किसी बात का ख़सारा न रहा
उन पर वो इख़्तियार अब हमारा न रहा
किसी और की हो गई है यूँ मसर्रत उनकी
कि हमारी तबस्सुम का कोई सहारा न रहा
उन्हें महजबीं समझ निकला चाँद को लाने
मेरी कहकशाँ-ए-इश्क़ में कोई तारा न रहा
इतने दिन में जान ही लिए असरार उनके
ख़ुश-आमदीद उस दिल में गुज़ारा न रहा
कौन से शिर्क में शरीक हो गया 'आरिफ़'
बज़्म-ए-याराँ में एक दोस्त बेचारा न रहा-
हुस्न-ए-जावेदाँ है सुर्ख़ रुख़्सार हैं उसके
हम नहीं जानते दोस्त हैं या प्यार हैं उसके
ख़्वाब में भी हमें वो हमारा ख़्वाब लगती है
ताबीर कर नहीं सकता ऐसे असरार हैं उसके-
वह है मेरी हमउम्र, हमजबां और हमसफर भी l
इश्क़ करने को शायद ये वजह काफी है ll
है होती नहीं मुकम्मल ये दास्तां हमारी l
हो ना हो आपस में अभी ग़िला काफी है ll
मुतमईन हूं कि इश्क़ है उनको हमसे भी l
असर दिखने में अभी असरार काफी है ll
महबूब में है नजाफ़त,नज़ाकत और नज़र भी l
दिल लगाने को तो बस एक झलक काफी है ll
हर पहलू में था नातमाम मैदान-ए-इश्क़ में l
इब्तिला ही सही मगर इश्तियाक़ काफी है ll
इश्क़ इल्लत नही ख़ुदा की नेमत है अनिकेश l
इसे मिटाने को जहां में पासवान काफी है ll-
मैं ज़ाहिर सारे 'असरार-ए-इश्क़' कर आया
ख़ुद का दिल हल्का, उनका भारी कर आया
रोज़ क़त्ल करते थे वो मेरा अपनी हर अदा से
मैं उन्हीं की अदा से उन्हीं का क़त्ल कर आया
जो कल तक कहते थे मुझे 'तू बड़ा है शर्मिला'
मैं उन्हें शर्म-ओ-हया से पानी-पानी कर आया
खड़े रहे वो बीच राह में, कुछ 'हक्के-बक्के' से
मैं ख़ुद को दीवाना और उन्हें बेक़रार कर आया
मिटा दिये सारे शिकवे-शिकायत, 'रंज-ओ-ग़म'
'सागा' सर झुकाकर इज़हार-ए-इश्क़ कर आया
- साकेत गर्ग 'सागा'-
मुझसे जुड़े चंद असरार हैं
चार परिवार
तीन अज़ीज़ यार
और ख्वाहिशें दो
जिसमें से
एक आप हैं-
"असरार"
बताना नहीं असरार सभी को, सभी मरहम लगाना नहीं जानते
दर्द अपना अगर हो नहीं दोस्तों, सभी आँसू बहाना नहीं जानते
बजती रहेंगी बज़्म में तालियाँ, ढोल तबले पर भी गुनगुनाते रहेंगें
सुनते हैं ज़ख्म दोस्तों का मगर, दर्द उनका घटाना नहीं जानते
असरार भले रहे दिल में दफ़्न, बात महफ़िल में यारा नहीं डालना
है दवा दर्द की पास सबके मगर, दर्दे-दिल पर लगाना नहीं जानते
दर्द उनसे कहो जो सुने धैर्य से रूह उनकाभी सुनकर पिघलने लगे
लगानेवाले नमक तो बहुत दोस्तों,सभी मरहम लगाना नहीं जानते
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दिल के *असरार तुम खोल ही दो,
गर इश्क़ है तो हां बोल ही दो
*राज़-
सारे असरार गोशा-ए-दिल में छुपा कर रखें हैं,
पूछ सकते हैं कोनसी तहज़ीब में छुपा रखे हैं।-