वैसे तो आज से हीं मैं,
यह कारोबार छोडने वाली थी ।
उमदा चलता है ये व्यापार,
फिर भी मैं अपनी राह मोड़ने वाली थी ।
आशुफ्ता अस्बाब से होके परे,
इख्लास सी गली को छोडने वाली थी ।
हुआ कुछ यूं कि,
फिर से आब-ए-चश्म आंखो मे भर गए ।
इतिहाद की तरह कुछ हादसे फिर से उभर गए ।
अफ़सुरदॉ से मन खामोशीयों में हलचल से कर गए ।
और फिर तब करते भी तो क्या करते जनाब,
मेरे अलफाज फिर से पन्नो पे हीं उतर गए ।-
दिल का दर्द बयान नहीं कर सकता
इसलिए अलफाजो में लिखा करता हूँ
खो कर सबकुछ अब अपना
तेरी याद में तड़पा करता हूँ-
खामोश लब्जों को पढ़ने का हुनर रखिये जनाब...
कुछ एहसासों को शब्दों में बयां नहीं किया जाता !!-
मैं जो पढ़ सकूँ तू वो किताब बन जा,
मेरे बिखरे अश्कों की अल्फाज बन जा,
जिसे मैं लिख न सकूँ तू वो राज बन जा,
मेरे हर उलझें सवालों की जवाब बन जा
खुदा का लिखा तू मेरा नसीब बन जा,
जिसे कोई मिटा न सके वो लकीर बन जा,
अधूरे से इश्क़ की तू मुकम्मल मकाँ बन जा,
नम आंखों की चंचल मुस्कान बन जा,
मेरे अनगिनत खुशियों की तू दुकान बन जा,
रब से की हुई मेरी अरदास बन जा,
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अब जो अल्फ़ाज़ है...तो भाव नहीं।
अब जो भाव है तो कलम में आंसू है स्याही नहीं !!-
लिखते हैं कुछ राज मन के,
खुद ही खुद को समझाने को,
शब्दों में लिपटे अल्फाज़ दिल के,
निकली हूं, जग को सुनाने को,
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इसी तरह तुम सवाल करो
हम तुम्हारे सवालो का जबाब बन जाए
ऐसे ही तुम छेड़ा करो
हम तुम्हारी मुस्कान बन जाएंगे
छा जाएगे तुम पे सुरुर बन के
तुम्हारे लबो की अलफाज बन जाएंगे-
मोहब्बत का भी शुक्रिया अदा किया करो ।
उन्होंने तुम्हे लिखने के काबिल जो बनाया ।।-
अल्फ़ाज़ कम पर गऐ अपनी मोहब्बत को बंया करने मे
फिर भी वो ख़ुश है अपनी ही दुनिया मे।-