अभिव्यक्ति
मन की यात्रा का
वो पड़ाव है
जहाँ पहुँच कर जीव
उस दिशा में
और भी ऊपर
जाना चाहता है ।-
जब जब आपने डमरू बजाया
मैं आनंदित, मगन हुई
छन छन छनक उठी मेरी पायल
जब नृत्य का तान सुनाई दी
मेरी पवित्रता ही गौरव मेरी शान
कर्म ही सत्य, धर्म ही दे सम्मान
मोक्ष प्राप्त करू जब भजु शिव को
मैं भोले की दीवानी रखूं सबका मान
मिटादूं सारे मन के भेदभाव
मेरे भोले की तरह मैं भोली रहूं
सच्चा राह दिखाने वाले शिव
यह जीवन आपको अर्पण करू
मोह माया से मुक्त, सुख दुख से परे
कर्म करती हूं पर मन से वैरागी हूं
स्वाभिमानी हूं, मैं बंधन नहीं, मोक्ष हूं
दर्द पीड़ा नहीं, मैं प्रेम की परिभाषा हूं-
मुस्कुरा रहा बेशक, पर भीतर मलाल है,
फँस गया यहाँ, यह कैसा मायाजाल है।
होठों पे शिकवे, न गिले कोई मालूम,
हलकी सी उभरी, यह कैसा सवाल है।
धुन जीवन का मुझे मालूम नहीं कोई,
पैर खुद थिरकने लगे, यह कैसा ताल है।
बात करने को सैंकड़ो, फिर भी रहूँ खामोश,
खुद से बड़बड़ाऊँ खुद, यह कैसा मेरा हाल है।
हैरान कर देती है काँटें कभी घड़ियों के,
वक्त थमे, मैं चलता रहूँ, यह कैसा कमाल है।-
जब कभी भी वो आईने के सामने बैठी हो,
तुम बस प्यार से उसके माथे पर बिंदिया लगा देना!
सच कहती हूं,
वो कभी भी चांद-तारों की फ़रमाइश नहीं करेगी!!-