प्रेम में लिखी गई कविता
स्त्री जैसी होती है..
वियोग में लिखा गया गीत
पुरुष जैसा होता है..
वियोग के बिना प्रेम अर्थहीन है-
क्या कहूं ख़ुद के बारे
एक अल्फ़ाज़ भी मुझे को बयां कर सकता है
और अल्फजों का पूरा शहर, नहीं भी
मैं किताबों की तरह भरा हूं ।
मैं कोरे पन्ने की तरह खाली भी
मुझे पढ़ना आसान है
बस समझना ज़रा सा मुश्किल
मैं दिखावटी रूप हूं , अदृश्य रूप भी
मुझमें कई लोग मौजूद है, हिस्से तरह
और मैं उन्हीं में से कोई हूं !
हां मैं भय का दोस्त अभय हूं !!
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अंश हूँ मैं शक्ति का ,
अभय मुझे वरदान है ।
अटल रहूँ अडिग रहूँ ;
यही मेरी पहचान है ।।
नारी हूँ मैं गर्व है ;
जो सृष्टि का सृजनहार है ।
अतुल है जिसकी कल्पना
कर्तव्य से महान है।।
ममत्व से भरी हुई ,
पर चंडी का अवतार है।
नारी हूँ मैं गर्व है ,
अमिट मेरी पहचान है !!!!
स्वीकृति मिश्रा-
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अरुणोदय से श्याम साँझ तक
विकल बुलबुला सा तन मेरा
अभय नहीं कह सकता बिल्कुल
मन मस्तिष्क, उभय का खेला
पर हरि नाम सर्वकल्याणा
तजते हरि पर अपना दुख सारा-
सुनो तो🤔
उसने कहा की आज भी,
मेरे पास उनका नंबर है पर बात नहीं होती।
Me- अरे भाई रिचार्ज नहीं होगा😃
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अगर साथ तेरा हो ऐ ज़िन्दगी,
मैं पा लूँ जहाँ की हर ख़ुशी,
अभी चलना बहुत दूर तक है,
यूँ ही मंज़िल नहीं मिला करती,
तुम ख़्वाहिश दुआ में मांगते हो,
ख़्वाहिश ऐसे ही पूरी नहीं होती,
बादल चुनता है सागर से बूँदें,
वरना यूँ ही बारिश नहीं होती,
तुमने तोड़ा है तो रोज़ मरता हूँ,
वरना ऐसे तो मौत नहीं आती,
#अभय-
लिपटने दे तेरी ज़ुल्फ़ें
इन लटों को सुलझाने को
खुलके बिख़रने ना दे
इन आवारा घटाओं को
सहम सी जाती है ये धड़कने
छूने पे इन बालों को
उलझने तमाम मेरी
दो लट में संवर जाने को
-
करते पान विष का तुम
देते अमरता का वरदान
हे भोले शंकर मुझको भी
दे दो अभय वरदान...-
पर क्या करेंगे जनाब आज
की इस परिस्थिति में बहुत
चीजें पैसों से ही
खरीदी जा सकतीं हैं...।।-