बहारों से पूछा कि आज धरा पर
ये कैसा मिलन है रुपहला सलोना,
जहाॅं हर कली ये अहसास देती
कि ऐसा नजारा मिलेगा कहीं ना।
ये पल्लवित,कुसुमित, सुगंधित हवाएं
ये भंवरों का गाना,मन को लुभाए ,
खिली है आज मेरे दिल की उमंगे
कि पूरी हुई आज सारी तमन्ना ।
ये रंगों का मेला, हरियाली का डेरा
कि मानो स्वर्ग ने किया यहां बसेरा,
ये अंजाना सुख मिला मेरे मन को
खो ना जाऊं कहीं ऐ मन तू संभलना।
ये कल-कल करती नदियों का चलना
सिमटना, मचलना,बल खाके उछलना,
क्या कहती हैं ये तुमसे चुपके -चुपके
कि तुम आज लहरों की धड़कन सुनो ना।
........ निशि..🍁🍁-
जल,थल,नभ् सब देख लिया है,
तुमसा कोई कहीं नहीं है !
सूरज,चाँद,फूल और कलियाँ,
इतना कोई हँसी नही है!
मधुमय ऋतुओं से भी मादक,
ये भी उपमा सही नहीं है!
अधरों पर उतरी जो लाली,
वो पलाश में कभी नहीं है!
अपूर्व कलाकृति देख तुम्हारी,
"स्वतंत्र" ह्रदय अब यहीं नहीं है!
सिद्धार्थ मिश्र-
प्यार के कितने रंग हैं ,
कितनी दिशाएं है.....
और कितनी सीमाएं हैं
और सबके अपने ढंग है ..."
(अनुशीर्षक में)
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कुछ दूर ही तो था , आवाज़ दे देते
कुछ दूर ही तो था, इक बार केह देते
मन की परत का क्या, दिल था नही मैला
आवाज़ दे देते , मुरकर न मैं जाता।
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प्रेम रोग से ज़ुरा हर काव्य
नही होता।
हर कवि प्रेमी की जमात
नही होता।
कुछ होते है ,मेरे जैसे भी
जिनको प्रेम रोग नही
कल्पविष का बुख़ार
चढ़ा होता।-
जिनका पेट भरा होता है उन्हें दीपिका दिखती है जिनका खाली होता है उन्हें जीविका दिखती है🙏🙏
#घोरकलजुग अपूर्व-
अपने लब्ज़ों को चलो नामों से सजाया जाये
शाज़िया बनके कोरेकाग़ज़ को महकाया जाये,
कोई मायूसी किसीके चेहरे पे ना आने पाये
आओ मिलकर उम्मीद का दीया जलाया जाये,
सभी अच्छे हैं यहाँ और सभी हैं अपने
जो रुठे हैं उन्हें बातों से मनाया जाये,
मिली है जिंदगी जीने को ख़ुशी से जी लें
किसी के राह में काँटा न बिछाया जाये,
सभी अपूर्व हैं कोई दूजा नहीं ख़ुद के जैसा
किसी के क़िरदार की कमिया न गिनाया जाये,
ज़िंदगी एक है दुनिया भी ख़ूबसूरत है "जिया "
फ़िज़ूल की बातोंसे न इसको गवाया जाये।
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