बसंत पंचमी है आज
बसंत पंचमी है आज,
हवा में कोई मधुर राग गूंजा,
जैसे मां सरस्वती ने वीणा छेड़ दी हो।
पहली किरणें जब धरती पर उतरीं,
तो फूलों ने पीले वस्त्र ओढ़ लिए,
और हर कली ने मुस्कुराकर
गान का पहला सुर छेड़ दिया।
मां सरस्वती…
तुम शब्दों में हो,
तुम सुरों में हो,
तुम बच्चे की पहली लिखावट में हो,
तुम उस रोशनी में हो
जो अंधेरे को मिटाने के लिए जलती है।
बसंत पंचमी है आज,
ज्ञान की धारा फिर उमड़ी है,
मन के कोरे पृष्ठों पर
सरस्वती की कलम फिर चल रही है।
वीणा के तार झनझना उठे हैं,
और हृदय के हर कोने में
मधुर संगीत घुल रहा है।
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पाप करूं और गंगा नहा लूं, ऐसी मेरी फितरत नहीं,
पाप की राह पर चलूं कभी, ऐसी मेरी किस्मत नहीं।
सच की डगर ही साथी है, झूठ से मेरा नाता नहीं,
गिरा दूं औरों के सपने, ऐसा कभी मेरा वादा नहीं।
पाप का धन सुख ला न सके, ये बात मैंने मानी है,
नेकी के दीप जलाए हैं, ये मेरी सच्ची कहानी है।-
नववर्ष की खुशबू
नया साल आया है, जैसे एक मधुर गीत,
दिल में बसी है एक मीठी सी राहत की रीत।
सपनों के पंखों पे उड़ान भरने चला है,
हर दिल अब नए ख्वाबों में खो जाने चला है।
पुरानी राहों पे अब नई मंजिलें हैं,
जो खो गया, वो अब यादें बन जाएं।
हर ग़म को अब हंसी में बदलने की बारी है,
नववर्ष में ये दुनिया खुशियों से भरने की तैयारी है।
ज़िंदगी का हर पल हो एक नया एहसास,
इस नए साल में हर दिन हो खास।
सपने अब सच होंगे, आकाश से बातें करेंगे,
हम भी अब हर पल को अपने प्यार में लहराएंगे।
हर सुबह अब नए उत्साह का संदेश लाए,
हर शाम खुशियों के रंग छाए।
नववर्ष की सर्दी में दिल में गर्मी रहे,
और दुनिया भर में प्यार की एक लहर हो।
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चुप था वो, पर उसकी चुप्पी बोलती थी,
हर निर्णय में एक कविता घोलती थी।
1991 का वो मोड़, इतिहास ने देखा,
उसके हाथों में भारत का सपना बुनता था।
विदेशी पूंजी के द्वार जब खुले,
हर युवा को उम्मीद के पर मिले।
उसकी नज़रों में थे देश के सपने,
उसके कदमों में छिपे थे अपने।
उसका मौन, एक संवाद बन गया,
हर नीति से नया आगाज़ बन गया।
विकास के रास्ते पर जो दिया उजाला,
हर धड़कन में था उसका हवाला।
सादगी, जैसे कोई गीत अनमोल,
जिसे महसूस करें, पर न कह सकें बोल।
मनमोहन, तू शायर भी था, सृजनकर्ता भी,
तेरे हर फैसले में दिखता था सच्चा भारतभी।
अब जब तू नहीं, तो समझेगा जमाना,
तेरा हर कदम था भविष्य का अफसाना।
तेरी विरासत में है देश की पहचान,
तेरे सपनों में बसा हिंदुस्तान।
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मस्जिद-मंदिर चुप है
आसमान पूछता है,
जमीन का पता क्या है?
जहां मस्जिद थी,
वहीं मंदिर खड़ा क्या है?
दीवारें ऊंची, दिल दूर हुए,
नाम खुदा-राम, इंसान क्यों मर गए?
घंटियां पूछें, शोर है या प्रार्थना?
अजानें कहें, सना है या बहसना?
धर्म अगर दीया,
तो नफरत कैसी चिंगारी?
क्यों इंसान बना इंसान का दुश्मन भारी?
रंग चाहे कोई भी हो,
खून तो लाल ही बहेगा।
मंदिर-मस्जिद का खेल,
किसके दिल को सहेगा?
सवाल लटके, जवाब गुम है,
कागज़ बंटे, धरती चुप है।
मंदिर-मस्जिद चुप है।
- अपूर्व भारद्वाज
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मानसून का मतलब है...🌧️
ना किसी की मान...🤬
ना किसी की सुन...😱
मानसून ने तुझे चुन लिया है🥰
तू भी मानसून को चुन 😘
सुन साहिबा सुन 🤗
मानसून की धुन 🌧️
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ज़िंदगी ज्यामिति जैसी होती है
लोग इसे रसायन समझ्ते है
मैं चित्त से वृत्त सा गोला भोला हूँ
लोग मिथाइल आइसोसाइनाइट समझते है 🙏🙏-
गर किसी दिन सारा संसार भी मुझे अस्वीकार कर दे तब मैं मेरे लिखे किसी एक पन्ने के पास चला जाऊँगा
जिन्हें कहीं भी जगह नहीं मिलती शब्द
उन्हें भी शरण दे ही देते है
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हमारा ही शीश कटेगा
हमारा ही बलिदान होगा
हम ही कराएंगे चारोधाम
फिर भी पुण्य उनके नाम होगा
अगर यही रही तेरी नियत तो
मुझे ये डर है कि इस कलजुग में
ना कोई शिव पुत्र गणेश होगा
ना कोई श्रवण कुमार होगा
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