जन्मतिथि विशेष
-
कौन करता है, फर्क
"कद" का"****
इस नये से ज़माने में
ख़ुदा-न-खास्ता
.........................
.
.
.
मैं अगर तुमसे
जरा सी भी
क़द में बड़ी हुई
मैं खुद को हमेशा
झुका लिया करुंगी
और तुम्हें उठाया करुंगी
यहीं तों हैं.... "अदब"-
अदब की खातिर ही लब्जों में तेरा नाम नहीं लिखती है
वरना तेरे ख्यालों में डूब के ही कलम कागज पे उतरती, है-
रिश्तेदारी में..
जरा नम रह गये
दुनिया के नक्शे-कदमो से दूर
जरा हम रह गये..
हमे तो लगा मोहब्बत बस्स हैं..
तेहजीब.. अदब.. नुमाईश.. इन मे..
जरा कम रह गये..!-
अदब इश्क का ; समझ ना पाए हम ,
उसे मुझसे इश्क है ; मुझे था ये भ्रम||-
बा-अदब लेकिन मिज़ाज तल्ख़ ही रखना,
नर्म लहज़े की लोग कद्र करना भूल जाते हैं !-
अदब तहज़ीब और मुसकान हमेशा साथ रखती हूँ,
नवाब हूं लेकिन सबको "आप" कहती हूँ!-
मोहब्बत की है तो अदब-ए-वफा भी सीखो,
ये चार दिन की बेकरारी मोहब्बत नहीं होती।-