अनभिज्ञ लोगों के सामने अज्ञात बने रहना ही सबसे बड़ी अक्लमन्दी होती है।
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एक ऐसा भी दिन था
जब मैं और तुम
अभिन्न थे एक दूजे से
हमराज़ थे एक दूजे के
और एक ऐसा भी दिन आया
के तुम अज्ञात हो गए
और हम अनभिज्ञ एक दूजे से
-भिमेश रामराव भित्रे-
आज सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लिखी कविता 'चाँदनी की पाँच परतें' पढ़ते हैं
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इस बात को सोचो फुरकत में
क्या रखा है ऐसे उल्फत में
तुम खुद को मुजरिम पाओगे
गर शक है जाओ अदालत में
उस सीमित वफा के पास नहीं
तुम लौट जाओ ना शराफत में
यहा इश्क का बदला इश्क नहीं
तब्दील है उल्फत नफरत में
इस राह से बचना मुश्किल है
यह बात है शामिल फितरत में....-
देख तुझे अज्ञात ख़ुशी
से मेरी आँखें भर आयीं !
बहुत दिनों के बाद सही पर
खुशियां मेरे घर आयीं !!
©प्रमोद कुमार 'आर्य '-
यदि तुम अत्याधिक प्रभावशाली हो तो तैयार रहो...
या तो तुम कर्ण की तरह छले जाओगे।
या तुम्हे अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में मार दिया जाएगा।
या फिर एकलव्य की तरह तुमसे अंगूठा मांग लिया जायेगा।
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मोहब्बत है ही ऐसी चीज
हो जाए तो बस हुई रहती है
भूलने की कोशशें
याद और दिलाती हैं-
कभी उम्र भर जिने की दुआ ना दे शाखी...
मौत जब आए तो बस अपनी बाहों में जगह दे दे !-