अनभिज्ञ लोगों के सामने अज्ञात बने रहना ही सबसे बड़ी अक्लमन्दी होती है।
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एक ऐसा भी दिन था
जब मैं और तुम
अभिन्न थे एक दूजे से
हमराज़ थे एक दूजे के
और एक ऐसा भी दिन आया
के तुम अज्ञात हो गए
और हम अनभिज्ञ एक दूजे से
-भिमेश रामराव भित्रे-
अधिरचना करती हूँ
अपने हृदय के उस खण्डहर की
जो भावों की शिलाओं को तोड़
जोड़ती हैं उस परिचित अनुभूति से
जिसके ऊँचे द्वार पर तुम्हारा
अज्ञात रुप मेरे विशुद्ध प्रेम
की वस्तुकला करती हैं ...।💕।🍁🍁-
आज सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लिखी कविता 'चाँदनी की पाँच परतें' पढ़ते हैं
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दूर कही अंतरिक्ष से
लिखता हैं स्नेह पत्र कोई मुझे ...
बादलों के बीच घिरा चाँद
छूप - छूप कर देखता हैं
एक अकेली मौन तारिका को
जो निरीक्षण कर रही हैं रात्रि का ...
झिंगुर की ध्वनियाँ रागम्य
दूर बज रहे विवाह गीत गा रहे है
और कोई इस सुरम्य रजनी में
मौन हृदय का उद्दीपन ढूढ़ रही हैं ...
जिसे अवलम्बन देती हैं प्रकृति
एक शालीनता लिए बहता हैं पवन
और बह जाता हैं हृदय का सारा द्वंद्व
कई दिन बाद कही एक कविता बन कर ...।।💕।।
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इस बात को सोचो फुरकत में
क्या रखा है ऐसे उल्फत में
तुम खुद को मुजरिम पाओगे
गर शक है जाओ अदालत में
उस सीमित वफा के पास नहीं
तुम लौट जाओ ना शराफत में
यहा इश्क का बदला इश्क नहीं
तब्दील है उल्फत नफरत में
इस राह से बचना मुश्किल है
यह बात है शामिल फितरत में....-
देख तुझे अज्ञात ख़ुशी
से मेरी आँखें भर आयीं !
बहुत दिनों के बाद सही पर
खुशियां मेरे घर आयीं !!
©प्रमोद कुमार 'आर्य '-
यदि तुम अत्याधिक प्रभावशाली हो तो तैयार रहो...
या तो तुम कर्ण की तरह छले जाओगे।
या तुम्हे अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में मार दिया जाएगा।
या फिर एकलव्य की तरह तुमसे अंगूठा मांग लिया जायेगा।
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