ये यादें नहीं
अंश है तुम्हारा
जो पल रहा है मेरे हृदय के गर्भ में-
देख! ये कैसी हमें तेरी, तलब लग गई है,
अब हर लफ्ज़ में मेरे, तेरे अंश दिख रही है।।-
"जब मैंने तुम्हें जाने पर मजबूर कर दिया
पर फिर भी तुम मेरे खिलाफ मेरे लिए खड़ी रही...."
मीरा बैरागी
बातचीत के कुछ अंश
(अनुशीर्षक )-
न उदास हो मैं तेरा इश्क हूँ
कोई उफनती लहर नहीं
जो वक्त के साथ थम जाएगी
बस यकीन रखना तेरा ही अंश हूँ
मेरा वजूद है तेरी खुशी
कोई आंसू नहीं जो साथ गम लाएगी
-
" तुम्हारी छवि "
गीली मिट्टी की महक और चमचमाती धूप,
फूलों के नाजुक पंखुड़ियों पर तितलियों का नृत्य,,
हरी हरी घास पर बारिश के बूँदों की चमक,
चिड़ियों के नन्हे बच्चों का मधुर क्रंदन,,
तुम्हें नहीं लगता ऐसे वक़्त में हम दोनों को साथ होना चाहिए और
इस सुहाने मौसम का लुत्फ़ उठाना चाहिए था,
पर...कैसे ?
तुम कहाँ हो और मैं कहाँ...??
हाँ! मुझे याद है, तुमने कहा था तुम मुझमे शामिल हो,
जब भी मुझे तुम्हारी कमी महसूस हो...
मैं बस आँखे बंद करके एक गहरी साँस लूँ ,
और अपने मन की गहराई में तुम्हें ढूँढू जहाँ तुम हमेशा मेरे साथ रहते हो,
पर......नहीं ,,
मैं भला! तुम्हें क्यों अपने मन में ढूँढने लगी?
मैं नहीं ढूँढूगी,
हाँ! सच सुना तुमने..."मैं नहीं ढूँढूगी",
बल्कि मैं तो बस, देखूँगी...कि मेरे मन में तुम्हारी वही छवि विधमान है कि नहीं,,
"
"
और पता है मैंने क्या पाया कि,
तुम मेरा ही "अंश" हो !!-
जो मान लो तो कृष्ण हूँ ना मानों तो कंस हूँ
सच कहूँ तो आपके नजरिये का ही मैं अंश हूँ।-
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ ,तुम्हारी छाप है मुझमें ...
वे गलत हैं , मैं तुम जैसी
बिल्कुल नहीं हो सकती
मेरा सिर्फ मुखड़ा मिलता है तुमसे
तुम्हारे गुण नहीं हैं मुझमें ..
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
मैं सिर्फ तुम्हारा अंश हूँ
तुम जैसी कभी नहीं बन सकती
तुमने जितने संतोष किए हैं
उतना धैर्य नहीं है मुझमें ..
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
तुमने कितना कुछ सहा है
कभी जुबान ना खोली
और मैं आजादी प्रिय
किसी को सहन नहीं कर सकती
तुमने सब के अत्याचारों को
आदर सम्मान दिया
मैं ऐसे रिश्तो की जिम्मेदारियां
वहन नहीं कर सकती
जितना साहस, जितना धैर्य
जितनी शीतलता है तुममें
माँ ! ऐसा तो कुछ नहीं मुझमें ..
सब कहते हैं मां !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....-
इस जग में जो भी हुआ, सब मेरे ही अंश
चाहे हो दशानन वो, या शकुनी या कंस-
ईश्वर के हैं अंश सभी, है सभी से राग
पहुँचाई चोट हो गर कभी, क्षमाप्रार्थी ये 'आग'।-
किसी की रक्षा और सेवा करने का मौका मिले, तो ख़ुद को खुदा का मैं अंश समझता हूं...!
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