मेरा सब कुछ ही ग़ज़लों में समाया है ,
मैंने पैसे कम , ज़्यादा नाम कमाया है ,
सच्ची गज़लें और अच्छे शेर लिखना ,
तेरी आशिक़ी ने इतना तो सिखाया है ,
बेहद अँधेरी होती थी उसकी गलियां,
हमने ज़्यादा वक्त जलकर बिताया है ,
समझा समझा के थक गयी ज़ुबान मेरी ,
उसे ये किस्सा ही तब समझ में आया है ,
एक अमानत को खो के रोने वाले तूने ,
क्या कभी किसी अपने को गवाया है ?
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