अपना ये हुस्न ज़रा ज़ुबान पर भी उतार लें
वहां ज़ुबान लबों से ताल मिलाती है,
यहां मोहब्बत दम तोड़ने लगती है।-
हर एहसास को ज़ुबां बनाना मुमकिन नहीं,
उभारकर ख़ामोशी को कागज पर,
बोल जाए वो जज़्बात लिखती हूँ।
ढ़ूंढ़ते है जो मोहब्बत बंद पलको के आशियाने मे,
मै ख़्वाबों मे हकीकत की वो उम्मीद लिखती हूँ।-
Meri zuba juth sahi,,
Par Aankhe Sach keh rhi thi tujhe..
Tumne bas samjha hi nhi,,
Ki Rok Lena tha mujhe-
लुट गए थे हम, मोहब्बत में तभी
वर्ना तेरे घर के सामने, हमारा भी मकाँ होता
किसी पत्थर को लगाने की ज़रूरत नही पड़ती तुझे
ज़ुबान पर हमारी, पता जो तुम्हारा रटा होता
-
वो ख़याल जो दिल बुनता रहता है,
जिनमें उलझता है तो कभी सुलझता है
जो जुबाँ न कर पाई कभी बयाँ
मेरी गज़लों का ऐसा है मेरा वो जहाँ।-
Jitna ho ske
khamosh rehna
hi accha hai,
kyuki sbse jayda
gunaah insan
se zuban hi
krwati hai!!-
Meri Kadvi zuban ka raaz bs itna hai
Mene aksr rawaiye khrab dekhy hain-
मेरा सब कुछ ही ग़ज़लों में समाया है ,
मैंने पैसे कम , ज़्यादा नाम कमाया है ,
सच्ची गज़लें और अच्छे शेर लिखना ,
तेरी आशिक़ी ने इतना तो सिखाया है ,
बेहद अँधेरी होती थी उसकी गलियां,
हमने ज़्यादा वक्त जलकर बिताया है ,
समझा समझा के थक गयी ज़ुबान मेरी ,
उसे ये किस्सा ही तब समझ में आया है ,
एक अमानत को खो के रोने वाले तूने ,
क्या कभी किसी अपने को गवाया है ?-
भले ही ख़ाक हो जायें हमे मंज़ूर है लेकिन
तुम्हारी ज़्यादती की क़तई इताअत ना करेंगे
ज़ुबां काटो कलम कर दो बाकी सरों को भी
तुम्हारी धमकियों के खौफ़ से सजदा ना करेंगे-