Dharmendra Singh   (धर्मेंद्र सिंह)
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तुम्हें फुर्सत नही थी बात करने की ।
हमनें तनहाइयों को शब्दों में पिरो दिया ॥
Joined 12 March 2021


तुम्हें फुर्सत नही थी बात करने की ।
हमनें तनहाइयों को शब्दों में पिरो दिया ॥
Joined 12 March 2021
4 AUG AT 10:51

ठोकरों ने मुझे इतना तो सिखाया है,
तकलीफ़ होती है भूल जाने के लिए ।।

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4 AUG AT 10:44

तुम्हें जाने से रोक लेता तो तुम साथ होती
ज़िंदगी में मोहब्बत सिर्फ़ एक बार होती
यूँ आवारगी में न भटकता शहर दर शहर
वो अपनी सोचता तो मंजिल हाथ होती

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3 AUG AT 22:00

सोचता हूँ लिखूँ कुछ तुम्हारे नाम भी,
फिर तुम्हें कोसने को जी नहीं करता ।।

ख्यालों में आज भी मैं सोचता हूँ बहुत कुछ,
पर तुमसे बात करने को जी नहीं करता ।।

ऐसा नहीं है मोहब्बत नहीं है,
पर इज़हार-ए-मोहब्बत को जी नहीं करता ।।

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26 JUL AT 8:11

सीता

हैं जो पुत्रवधू, चक्रवर्ती राजा दशरथ की,
धर्मशील मिथिला नरेश राज कन्या है ।।

जो भार्या हैं राम की, लक्ष्मी स्वरूपा सिया,
अश्रुपूर्ण नयनों से देखे कहीं जाती है ।।

राम के वियोग में जो रटती हैं राम-नाम,
कर उपवास दिन जैसे-तैसे काटती हैं ।।

छोड़ आई राज-पाट धन वैभव सब,
राम के वियोग में मलिन हुई जाती है ।।

बैठी जो अशोक तर, ध्यान में हैं राम धर,
मिलन की आश में, राम-राम गाती है ।।

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25 JUL AT 5:16

मुझसे नफ़रत है तो उससे कहो कि, इज़हार करे,
मैं कब यह कहता हूँ कि, वो मुझे प्यार करे !

कर दिया है किनारे, उसने भी कचरे की तरह,
सख्शियत अब तू ही बता कि, हम क्या करें ?

नीलाम होने को है बाज़ार में वो फिर एक बार,
ख़रीदार न मिला फिर, तो हम क्या करे ?

तनहाइयाँ नसीब बन गई, परछाई की तरह,
खिलौना तोड़ दिया उसने, तो हम क्या करें ?

शौक है उसे भी ख़रीदने का सब कुछ,
वो ग़लतफ़हमी का शिकार है, तो हम क्या करें ?

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22 JUL AT 22:15

हुआ है कुछ

ग़र हुआ है मुझसे गुनाह कोई, आकर मुझे बताओ सही,
यूँ न लगा तोहमत रफ़ीक़, बताओ सही क्या खता हुई।।

ज़ज़्बात मेरे गुनाह कैसे, न समझ सका मैं इस बार भी,
हो गया मैं तेरे ख़िलाफ़ कैसे, बता सही, क्या बात हुई।।

ख़राब तबियत हुई है कैसे, मर्ज़ क्या है, क्या बात हुई,
इलाज़ तेरा करूँ मैं कैसे, दवा, दुआ या कुछ और ही ।।

रहा है जो कुछ, दिया है सबकुछ, वज़ूद मेरा, पहचान भी,
नहीं बचा कुछ बताऊँ मैं कैसे, रूह है ले जाओ यह भी ।।

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6 JUL AT 20:13

फ़र्क़

किसी को पाना अगर ख्वाहिश होती,
तो हम भी हुनर सीखते सलीके से जीने का ।

जानते तो हम भी हैं, वो जिस पर फ़िदा है,
लेकिन हम वो हो नहीं सकते, जो सबब हो आँसुओं का ।।

तनहाइयाँ क़ुबूल है, मुझे उनकी आदत है,
तुम उसकी बताओ, जो ग़ुलाम है सहारों का ।।

तुम्हें लगता है कि तुम सही हो, तो तुम सही हो,
फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है, क्या हाल है यारों का ।।

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6 JUL AT 20:07

चाहते तो सब भी यही हैं, जीना !
कुछ तुम्हारी तरह !
कुछ की किस्मत साथ नहीं देती,
कुछ की हिम्मत साथ नहीं देती ।।

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6 APR AT 3:33

ख्यालों में मेरे

ख्यालों में मेरे भी आती है वो,
कहीं है, कहीं की, कहीं से थी जो ।।

वो हँसकर पकड़ना, पकड़कर सिमटना,
बाहों में मेरी ही, जन्नत है, कहना ।।

वो कहना तुम्ही हो, वो जान-ए-मोहब्बत,
तुम्हारे सिवा, नहीं कुछ हकीकत ।।

तुमपे ही दिन होता, तुमपे ही रातें,
तुम्हारे ख़यालात, तुम्हारी ही बातें ।।

कहती थी कल तक मुझे जो खुदा,
कैसे रहेंगे हम, होकर जुदा ।।

भुलाया उसी ने हमें सबसे पहले,
मिलाया है रब ने कहती थी जो ।।

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23 JAN AT 1:03

नाकाम मोहब्बत को भी बड़ी शिद्दत से जिया है, तुम चाहकर भी मुझको नकार नहीं सकोगे !

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