पतझड़ भी हिस्सा है जिंदगी के मौसम का
फर्क सिर्फ इतना है
कुदरत में पत्ते सूखते हैं हकीकत में रिश्ते
तेरी यादें जैसे मौसम-ए-पतझड़..
जब भी आती है बिखेर देती है मुझे..-
धीरे धीरे नैय्या डोले
हौले हौले मनवा बोले
लहरों के संग होले
ओ नांवरी...
धीमे धीमे पूर्वा गाए
मद्धम मद्धम मेघ छाए
भंवर कोई पड ना जाए
ओ सांवरी...
भीनी भीनी खुशबू जागे
झीनी झीनी चन्दन लागे
मन कस्तूरी पीछे भागे
ओ छांवरी...
झलकी झलकी हवा महके
ढलकी ढलकी रैना बहके
हल्की हल्की आग दहके
ओ बांवरी...-
When I was younger,
I used mature words.
Now, my words have matured.-
आदमी को आदमी के काम आना चाहिए।
ये न सोचो बदले में कुछ दाम आना चाहिए।
अपनी कोशिश हो कि बस इंसानियत के दर्द में,
चाहे थोड़ा ही सही आराम आना चाहिए।-
है इस तूफ़ानी मंझधार में
तेरा नाम जपता रहूं यही है अख़्तियार में-
वो जज़्बात नहीं लिखी,
वो अपनी प्यार वाली रात नहीं लिखी,
जिसे दुनियां को बताना चाहता था,
वो मोहब्बत वाली बात नहीं लिखी...!
-Dr Patel-
जैसे
पगडंडियां मिल जाया करती हैं
भटकी हुई वीरान सड़कों से
बिछड़ो तो इस तरह जैसे
नदियां खो देती हैं खुद को
समाकर एक अंजान समंदर में-
there is no cleanliness.
Everything needs to be clean -
Mirror of feeling
Floor for space
Cupboards of care
Windows of trust and
walls of forgiveness.-