जो ज़ाहिर हो जाए, वो दर्द कैसा
जो छोड़ कर न जाए, वो बेदर्द कैसा
हर ज़ख़्म की शिफ़ा हो, ये क़र्ज़ कैसा
जिसकी दवा उस के लम्स से न हो, वो मर्ज़ कैसा।-
ना रौशनी का सहारा, ना अंधेरे का ग़म
सफ़र-ए-ज़िन्दगी है, और चलना है हर कदम
मंज़िल की तलाश है, पर राहगुज़र क्या है अपनी
जहां कोई राह मिलती है, उसी मुक़ाम पर हैं हम।-
अब अक्सर बैठे बैठे खो जाते हैं
साहिलों पे अश्कों के मोती बो जाते हैं
दुनिया के शोर में सन्नाटा बहुत है
ख़ुद से बातें करते करते ही सो जाते हैं-
तेरी याद में हम ज़माना भूल गए
हर क़िस्सा, हर कहानी, फ़साना भूल गए
तेरे रुख़ की तलाश में भटके कहाँ कहाँ
ख़ुद की हस्ती, पता, ठिकाना भूल गए
तेरे दीद की आस में जलते रहे नयन
ख़्वाब से भी दिल को बहलाना भूल गए
रात गुज़री करवटें बदलने के दरमियाँ
सुबह कब आयी, मौसम सुहाना भूल गए
ढूँढ़ते ढूँढ़ते तेरे नक़्श-ए-क़दम
अपना नाम, ख़ानदान, ज़माना भूल गए
साहिलों पर लिखे सब निशान मिट गए
हम तो दरिया का तराना भूल गए
तेरे गेसू की ख़ुशबू के पीछे ही पीछे
नौकरी भी गई, हम कमाना भूल गए
रोज़गार की धूप में पिघलते रहे मगर
रुपए पैसे से दिल लगाना भूल गए
तेरे ज़िक्र में खो गए इस क़दर
दुआओं के भी ख़ज़ाना भूल गए
मस्जिदों में सजदे करने की सोच थी
पर रब का भी अफ़साना भूल गए-
ये लाली, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें खुली खुली
ये रुख़्सार, ये लब, ये निगाहों में मय घुली घुली
रेशमी लम्स, मुश्क-ए-ख़ुशबू, ये शफ़्फ़ाक बदन
जिस्म-ए-गुलाब ओस के पसीने से धुली धुली
तेरे तसव्वुर से ही रगों में नशा उतर आया
लब भी न छूए और बदन रंग से भर आया
तेरी हँसी, तेरा इशारा, तेरी हर बात लगी
जैसे छूने से पहले ही बिखर जाने का डर आया-
ख़ामोश लबों से कुछ अफ़साने कह गए
कहने वाले इक दोहे में ज़माने कह गए
इश्क़ ने करते-करते वो हाल किया अपना
मजनूँ जैसे आशिक़ भी हमें दीवाने कह गए
आगोश-ए-सुरूर में तेरी आँखों को पैमाने कह गए
सुर्ख़ होंठों के गुलाब को मयख़ाने कह गए
बेख़ुमारी के आलम में उनसे रु-ब-रु हुए
वो भी हुस्न-ए-ग़ुरूर से चूर हमें जाने-पहचाने कह गए
शबनम में भीगते तेरे ख़्वाब कुछ सिरहाने कह गए
चाँदनी की साज़िश को भी नज़राने कह गए
राहों में बिखरी तेरी ख़ुश्बू ने ये राज़ खोला
मेरी नींद को तेरी याद के तहख़ाने कह गए-
तेरे न मिलने का मलाल तो रहेगा
सुबह-ओ-शाम तेरा ख़याल तो रहेगा
दुआओं के दामन में ग़म भरता रहूँ
पर वजूद में तेरा जलाल तो रहेगा-
तुम एक क़सम निभाने से डर गए
लाखों बहाने बनाकर, मेरे एक बहाने से डर गए
जिस राह पे मेरा नाम लिखा था कभी तुमने ख़ुद से,
उसी मोड़ पर आज मेरे आने से डर गए।-
ज़िन्दगी है चार दिन की, कुछ भी न गिला कीजिए
कौन जाने क्या हो आगे, हँस के सब से मिला कीजिए
जो गुज़ारा दर्द में है, वो वक़्त आख़िर गुज़र गया
दिल मिले तो दिल से मिलकर, दर्द को भी सिला कीजिए-
उसने पूछी थी आख़िरी ख़्वाहिश मेरी
ज़िन्दगी बन गई थी अब आज़माइश मेरी
क़ब्र पे आँसू कोई अपना गिरा दे
बस ये थी आरज़ू सदा-ए-जुदाई मेरी-