वक़्त
ऐ वक़्त तू जरा ठेहर गया होता,
मां की गोद में थोड़ा और सो लिया होता,
पापा के कंधो पे दुनिया थोड़ी और घूम लिया होता,
बेमतलब की खुशियों के लिए बड़ा ना हुआ होता।
ऐ वक़्त तू जरा सा ठहर गया होता।
ऐ वक़्त तू अगर जरा सा ठेहर गया होता,
तो उनके साथ बैठ के में खुशियां अभी भी बुन रहा होता,
शायद एक नई शुरुआत में उनके साथ कर चुका होता,
मेरी कहानी को एक नया मोड़ शायद दे दिया होता,
काश ए वक़्त तू थोड़ा सा तो ठेहर गया होता।
अरे सुन ले ए वक़्त अब आज थोड़ा ठेहर जा,
अभी अभी तेरे साथ है मैंने चलना सीखा,
दो पल की महोलत दे दे मुझे अब तो दिल भी है थक चुका,
इन लम्हों को आज में ही जी लेने दे मुझे कल का महोताज मत बना,
ऐ वक़्त आज तो जरा ठहर जा।
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