उन्हें चाहते इक जमाना गुजर गया।
अब जो आयें हैं तो पल ये ठहर गया।। — % &-
हमारी हिन्दी ,हमारी और हमारी संस्कृति की पहचान है इससे ना सिर्फ मोहब्ब... read more
तेरे शहर में आईने बड़े हैं,
उन आँखों में ही कहीं उलझे पड़े हैं।
दूर खड़े कहीं पछ्ता रहे हैं,
सामने आने से जाने क्यूँ घबरा रहे हैं।
थाम कर हाँथ तेरा कहीं दूर जाना है,
लगता है उस सहर में अब ना मेरा ठिकाना है।
उलझी उलझी लटें हैं आँखें भी हैं सोई,
नहीं कहते अब कुछ और पर तू लगती है रोई।।
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रावण लौट आया है,
मन बड़ा घबराया है।
छोटी को कहा था,
बाहर मत जाना।
रावण आने वाला,
सुनती नहीं है मेरी।
करती रहती है मनमानी,
कहती है कहाँ तक रूकूँ मैं??
बोलो कहाँ तक छुपूँ मैं??
बताओ किस-किस कि नजरों से??
मुझे ख़ुद को बचाना है,
रावण आएगा तो,
ख़ुद को कहाँ छुपाना है।
तब सोचती हूँ मैं
हर बार आता है,
किसी एक को निगल ही जाता है।
पर हम चुप रहते हैं और कहते हैं,
तू बाहर मत जा !!!
हमें बस अपनी इज्जत बचाना है,
रावण को तो हर बार आना है।।-
मैं शापित हूँ,
घुट-घुट कर मर जाने को।
मैं शापित हूँ,
हर बार जलाए जाने को।
नहीं कह पाती हूँ मैं दर्द अपना,
क्योंकि शापित हूँ,
चुपचाप सह जाने को।
पीड़ा देखती हूँ उनकी,
मैं भी रो पड़ती हूँ।
हाँ मैं शापित हूँ,
कुछ ना कह पाने को।
होते हैं कुछ रिश्ते ऐसे जैसे,
पैरों में बिवाइयाँ या हो मोटे छाले।
पर हम शापित हैं,
उस चुभन को सह जाने को,
हर बार मुस्कुराने को।
हाँ हम सब शापित हैं,
स्त्री हो जाने को।
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स्त्री
अबला होती हैं
किसी जादू सी छाने वाली
खूबसूरती सी आँखों में बस जाने वाली
काजल हो ना हो
सुर्ख आँखों में जाने कितनी
गहराईयाँ छिपाने वाली
स्त्री
किसी प्रेम सी होती हैं
मन में कोमलता भर के
कोयल सी मधुरता की तान सुनाने वाली
स्त्री
जादू होती हैं
मन में बस जाने वाली......-
तुम तो चुप रहती हो पर
ये आँखें जाने क्या क्या कहती हैं
छुपा के रखती हो जो तुम दिल में अपने
ये आँखें वो सब हमसे कहती हैं
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लौट कर चाहे जख्म दो
या फिर कोई सजा
मर तो रही हूँ जीकर भी
ये कम है क्या मेरी सजा
दर्द कितने हैं सीने में
कैसे बताऊँ ये मैं तुमको
रो तो रही हूँ टूटकर हर पल
मैं तेरे इश्क़ में
क्या होगी इससे बढ़ कर भी
मुझसे तेरी दगा............
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माना की गुस्सा करते हैं ज्यादा,
मगर ये सच नहीं कि तुम्हारी मोहब्बत से ज्यादा।।-
एक बारिश हो मोहब्बत की,
भीग जाए जिसमे हम संग संग।
गिरती बूँदे उसकी ऐसे,
भीग जाए ये तन मन।।
राहें हो कितनी भी मुश्किल,
कदम उठाए हम संग संग।
चलते रहें हम, चलते रहें,
ख़तम हो बस ये चार क़दम।।
हो इक बारिश ऐसी भी,
भीगे जिस मे हम तुम संग।।
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