Koyal Mishra   (Koyal)
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Joined 4 July 2020


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13 FEB 2022 AT 17:56

उन्हें चाहते इक जमाना गुजर गया।
अब जो आयें हैं तो पल ये ठहर गया।। — % &

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12 FEB 2022 AT 21:11

उनसे प्रीत लगाई,
जिनमे ना थी कोई खुदाई।।
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12 FEB 2022 AT 16:47

तेरे शहर में आईने बड़े हैं,
उन आँखों में ही कहीं उलझे पड़े हैं।

दूर खड़े कहीं पछ्ता रहे हैं,
सामने आने से जाने क्यूँ घबरा रहे हैं।

थाम कर हाँथ तेरा कहीं दूर जाना है,
लगता है उस सहर में अब ना मेरा ठिकाना है।

उलझी उलझी लटें हैं आँखें भी हैं सोई,
नहीं कहते अब कुछ और पर तू लगती है रोई।।
— % &

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15 OCT 2021 AT 13:33

रावण लौट आया है,
मन बड़ा घबराया है।
छोटी को कहा था,
बाहर मत जाना।
रावण आने वाला,
सुनती नहीं है मेरी।
करती रहती है मनमानी,
कहती है कहाँ तक रूकूँ मैं??
बोलो कहाँ तक छुपूँ मैं??
बताओ किस-किस कि नजरों से??
मुझे ख़ुद को बचाना है,
रावण आएगा तो,
ख़ुद को कहाँ छुपाना है।
तब सोचती हूँ मैं
हर बार आता है,
किसी एक को निगल ही जाता है।
पर हम चुप रहते हैं और कहते हैं,
तू बाहर मत जा !!!
हमें बस अपनी इज्जत बचाना है,
रावण को तो हर बार आना है।।

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2 OCT 2021 AT 14:19

मैं शापित हूँ,
घुट-घुट कर मर जाने को।
मैं शापित हूँ,
हर बार जलाए जाने को।
नहीं कह पाती हूँ मैं दर्द अपना,
क्योंकि शापित हूँ,
चुपचाप सह जाने को।
पीड़ा देखती हूँ उनकी,
मैं भी रो पड़ती हूँ।
हाँ मैं शापित हूँ,
कुछ ना कह पाने को।
होते हैं कुछ रिश्ते ऐसे जैसे,
पैरों में बिवाइयाँ या हो मोटे छाले।
पर हम शापित हैं,
उस चुभन को सह जाने को,
हर बार मुस्कुराने को।
हाँ हम सब शापित हैं,
स्त्री हो जाने को।

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2 DEC 2020 AT 15:01

स्त्री
अबला होती हैं
किसी जादू सी छाने वाली
खूबसूरती सी आँखों में बस जाने वाली
काजल हो ना हो
सुर्ख आँखों में जाने कितनी
गहराईयाँ छिपाने वाली
स्त्री
किसी प्रेम सी होती हैं
मन में कोमलता भर के
कोयल सी मधुरता की तान सुनाने वाली
स्त्री
जादू होती हैं
मन में बस जाने वाली......

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16 AUG 2020 AT 20:12

तुम तो चुप रहती हो पर
ये आँखें जाने क्या क्या कहती हैं
छुपा के रखती हो जो तुम दिल में अपने
ये आँखें वो सब हमसे कहती हैं

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23 OCT 2021 AT 22:32

कोई प्रेम गीत ऐसे,
जगते हो रातों में,
कोई मन मीत जैसे।
खिली चांदनी ऐसे,
खिला हो कोई चंदन वन।
फ़िर रहे हैं ऐसे जैसे,
ना हो कोई बंधन।
दूर कहीं नदियों में,
सुने पड़े तालाबों में,
घूमता रहता है मेरा मन।
मिल जाए सुध पिया की,
ऐसे है मन में अगन।
छिटकी है चांदनी,
और चंचल है मन।
ढूंढे बस पिया को,
ये जंगल - जंगल ,
भटके है भटके मेरा मन।।

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5 OCT 2021 AT 8:32

बेताबियों का आलम ही कुछ ऐसा है।
कि उनका हाथ छूटे तो मरने जैसा है।।

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29 SEP 2021 AT 14:15

जाने कब से ना सोई आँखें,
जाने कब से ये रोई आँखें।

पुकारे तुझको , ये आवाज़ देती हैं,
लौट आओगे इक दिन, दिल को अहसास देती हैं।

तुम्हारा ना होना भी अब तो कुबूल कर बैठी हूँ,
जाने कैसे पर मोहब्बत करने की भूल कर बैठी हूँ।

कितना भी रोऊँ पर कम नहीं होता,
तुम्हारे जाने का गम इस दिल से नहीं जाता।

जान लेगा तू मेरी या लौट आएगा,
रहेगा दिल में या इन आँखों से बह जायेगा।।

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