बहुत दिनों बाद आज कलम उठाई है,
हाथों में मानो एक नई सी जान आ गई है,
हर सोच को तसवीर में तब्दील करने की कोशिश हो रही है,
हर आवाज़ के पीछे गहरा मतलब निकाला जा रहा है,
मगर फिर अचानक से सन्नाटा छा जाता है,
की कलम मेरी और देख कर कुछ कह रही है,
स्याही इन पन्नों पर ढलने को तैयार है,
मगर कुछ अल्फ़ाज़ है जो रूठ कर बैठे है,
मानो सब कुछ यही पर थम सा गया है,
और हाथों में कलम लिए हम डूब से गए है,
गोता लगा रहे है शब्द-समंदर में कुछ मोती ढूंढ रहे है,
धीरे धीरे कलम-वायु ख़तम हो रही है,
ये रात भी अब ज्यादा ख़ामोश हो रही है,
कोई कह दो उन अल्फाजो से जरा की ये रात हमारी है,
इस के आगे तुम्हारी एक न चलनी है,
चाहे कितना भी रूठे रहो, आज हमे एक कविता जरूर लिखनी है।
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