अपराजिता   (अपराजिता की भावना)
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Joined 12 March 2019


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इश्क़ में सौगात में मिल गया आतिशी का फ़लसफ़ा

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मोहब्बत का पैमाना छलकने को है
दिल के जज़्बात अब बहकने को है
दिल थाम कर रखना अपना ज़रा
अरमानों की बारात सजने को है

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मुझ से दूर जाना क्या मजबूरी था

दिल की बातों को दिल में रखकर
मुझ से झूठ कहना क्या ज़रूरी था

वादा निभा नहीं सके अपना कोई
दिल से भी इतना तू क्या फकीरी था

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पराये का भी दर्द देख आँखों में आँसू आ जाना

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सुकून से ममता का आँचल भर देता है
मुसीबत के जंजाल से निकाल लेता है
हो कितने भी परेशान संभाल लेता है

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सब अपनी मजबूरी के आधीन है
जीवन जीने के लिए कहाँ स्वाधीन है

सब अपनी मर्ज़ी के लगते मालिक हैं
पर अपने ही ख़्वाहिश के पराधीन है

अपने आप को बेस्ट दिखाने के लिए
एक दूसरे की करते रहते तौहीन है

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नहीं होता अब काबू

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मेरी ज़िंदगी थी कितनी सादी
अब तेरे इश्क़ की हो गयी आदी

इश्क़ के लम्हों का हो गया जादू
जिंदगी में हो गयी चांदी ही चांदी

तेरे नाम की मेंहदी महावर रचा
जज़्बातों के संग हो गयी शादी

_अपराजिता की भावना




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ख़ाली कप में चाय इश्क़ की चाहिए
तनहाई का नहीं कोई रश्क चाहिए

ख़ुशी के बहार में मस्त रहे तेरे संग
ग़म का एक भी अश्क नहीं चाहिए

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ज़िंदगी में आने का इरादा कर लेते

आ जाया करो समय से तुम भी
हम बार - बार न पुकारा तुम्हें देते

तनहाई जब - जब परेशान करती
तेरी तस्वीर अक्सर निहारा करते

तेरे इश्क़ में ख़ुद को संवारने लगे है
आइना देख ख़ुद को निखारा करते

तुझसे इश्क़ का इजहार कैसे करे
यही बात बार - बार विचारा करते

_अपराजिता की भावना








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