जीत गई फिर दरिंदगी,एक माँ की ममता हार गई,
छल करके ममता से,क्यों भावनाओं का उपहास किया।
कहने को तो,परमपूज्य भगवान हूं मैं,
फिर अपने कृत्यों से,क्यों मानवता को शर्मसार किया।
प्रकृति रो रही है,जंगल भी रो रहे है,
नही चीखी आत्मा उनकी,कैसे ह्रदय को पत्थर किया।
छीनी क्यों साँसे,पूछ रहा है नन्हा,मुझको उत्तर दो,
क्या हमने अपराध किया..?जो तुम पर विश्वास किया।
कहे गए सर्वाधिक बुद्धिमान,मानव इस ब्रहमांड में,
देखो कैसे मानवता का,तुमने अंतिम संस्कार किया।
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नारी,
तुम्हे उपहार दु,के उपहास दु नारी।
तुम्हे नारी होने का अभिशाप दु नारी।
अपने अंदर दुख का समुद्र लिए रहती है।
फिर भी होठो पे मीठी मुस्कान लिए रहती नारी।
तुम्हे बेटी होने का वरदान मिला।
तुम्हे पत्नि बनने का सौभाग्य भी मिला नारी।
तुम्हारे पति के गुजर जाने पर,
तुम्हे विधवा होने का अभाग्य भी मिला नारी।
बच्चा होने पर तुम्हे माँ का रूप दिया गया,
न होने पर तुम्हे बांझ का नाम भी मिला नारी।
तुम्हे किसी ने अपने पैरों के नीचे रखा,
तो किसी ने तुम्हारे इज्जत को तार तार किया नारी।
अपने शौक को पूरा किया,
तो कोई जला दिया गया तो किसी ने कही का नही छोड़ा नारी।
तुम्हे कोई सही नाम नही मिला,
तुम्हे समाज सही स्थान नही मिला नारी।
फिर भी तुमने अपना पहचान बना के रखा नारी।
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दो लोगों का प्रेम में होना उनका बिगड़ जाना नहीं होता है,
बिगड़ने और प्रेम में होने में जमीन- आसमान का अंतर होता है
ये अंतर केवल वहीं समझ सकता है जिसने प्रेम का अनुभव किया है
जिसने कभी प्रेम नहीं किया वो प्रेम को बिगड जाने का उपमा देकर ,
न जाने कितने लोगों का उपहास उड़ा उनके दिलोंं को तोड़ देता है।-
एक रोग क्या फैला लोगों ने मजाक बना डाला,
दान के नाम पर एक अलग ही रिवाज बना डाला,
चंद किलो राशन एक कैमरा और दानिओं का झुंड
फिर गरीबों की गुरबत का उपहास बना डाला।-
हर बड़े कार्य को चार,
अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है
उपेक्षा, उपहास, विरोध,
ओर अंत मे '"विजय"'-
उपहास
अक्सर उड़ता उनका उपहास
जिनका करते हैं अल्पानुमान .
कुछ भी बोल देते हैं
सोच ये तो है विचारहीन इंशान .
खुद की दामन पे भी लगते हैं दाग
जब उड़ाते हैं किसी का गन्दा उपहास .
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बेचैनी सी है
छोटी सी जिंदगी में
सफलता के
और कितने प्रयास करूं
गिर गिर कर थक गया हूं
उपहास के
और कितने प्रयास करूं-