संवेदनाये है मन के फूल
कड़वाहट है तन का बाह्य शूल .
स्थितियां जब होती है प्रतिकूल
फूल की रक्षा करते है शूल .
पर कड़वाहट ही कड़वाहट हो तो फिर
फूल को भी जख्मी कर देते है शूल .
असंवेदनशीलता ही है मन के काटें ,
संवेदनशीलता जीवंतता के होते अनुकूल .
काया होगी सिर्फ मिट्टी और धुल
जब मुरझा जायेंगे मन का फूल .-
प्रकृति का ऋणात्मक है आधार
करती क्षय है जब तक न हो
ऊर्जा का संचार .
हो जैव या अजैव
शिथिलता निगलती ही है उसको
नश्वरता ही है अंतिम परिणाम .-
बुद्धि की सब परतों के भीतर
है मेरा असली स्वरुप .
जो गढ़ा है इसके अंदर
वही तो है अपना बाह्य रूप .-
समझदारी से ही मिलता है समाधान
वरना , जीवन में होता है केवल व्यवधान .
पोंगा पंथी और ढकोसलो में उलझकर
करते क्यों है अपना और नुकसान .
समस्या की मूल में ही छिपा है
समस्या का बेहतर निदान .-
है हसरतों की दरिया
की चाहत जिसका कोई अंत नहीं .
डूबा जो गहराई में इसकी
चाहके भी निकल पाया नहीं .
है जिस्म तो लबालब
रूह को है क्यों तसल्ली नहीं .-
उधेड़बुन
क्यों है ये उधेड़बुन
मौन बैठे हो क्यों .
होंगे जरूर आस पास कुछ अपने से
किसी को बताओ तभी तो
कुछ समाधान होगी
होगी अगर सब दरवाजे बंद .
तो निकलने की कहाँ से राह होगी .
चुप रहकर दुब मत जाना
बहकर निकल जाना
खुले में ही जीवन आसान होगी.-
चुभ गयी बातों के तीर जो मन में
उड़ गयी आँखों से सारी नींद .
बिख़र गए फूल से मन की पंखुड़ियां
समेटे नहीं सिमटता है जो
जोरदार धसी जो मन है कील .
शांत हो जा , शांत हो जा ,
दिलाशा दे कर इस चोटिल मैं को
की फिर जाते ही है बुरे दिन .
शूल जो मन में है चुभी
शनः शनैः खुद छोड़ देंगे होकर अधीर .
फिर आहिस्ता आहिस्ता
समेट कर बिखरे मन की पंखुड़ियां
बांध कर अपने जोरदार आत्म बल से .
सो जाये फिर गहरी चैन की नींद .-
शुन्य में भी तालाश थी .
भौतिकता में भी तलाश है .
स्वच्छंदता पाने का ही प्रयाश है .
खुद से अपूर्ण है .
उस विवेकशील सम्पूर्णता
की तलाश है .
युगों से भटकते
फिर भी उस अंतिम सुधार की तलाश है
अंतर्दव्दो के उस आखिरी विजेता
उस भौतिक की तलाश है .-
क्या टीस है मन में
की मुस्कुराहट में भी छिपी
दर्द की गहराई है .
है वो बात क्या
की आँखों में आँशु छलक आयी है .
प्रेम में पड़े दो तन है जुदा
तन्हाई की सजा पायी है .
होता नहीं ये इश्क आसां
इन आँखों में बस उसकी
तस्वीर उकर आयी है .-