वक़्त की स्थिरता को जाना तो पता चला,
रोज़मर्रा की कश्मकश से गुजरना और भीड़ में चलना एक था,
सपनों के समावेश में बहना और गोते खा के तैरना एक ही था,
खुद से गुफ्तगू करना और खुद ही चुप हो जाना एक था,
वक़्त का थमना भी एक अलग अनुभूति है,
पर वास्तविकता से परिपूर्ण वक़्त का थमना तो मात्र एक कल्पना है,
अनुभूति की पराकाष्ठा से परे फिर क्यूं मेरा मन आज व्याकुल सा है...
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