बीच चौराहे पर बेज़्ज़त हुआ
क्या मेरा आत्मसम्मान नहीं था
पलट के देता उत्तर मैं भी
पर दोनों के लिए कानून समान नहीं था
वो मारती गई, मैं सहता गया
क्या गलती है मेरी दीदी ये मैं कहता गया
वो क्रोध की आग में झुलस रही थी
नारी शक्ति का सहारा लेकर मचल रही थी
अगर क़ानून दोनो के लिए एक जैसा होता
फिर बताता तुझे आत्मसम्मान खोना कैसा होता।
😔😔😔😔😔😔😔
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