एक नई बस्ती में कदम रखा था,
सोचा न था..
कारवां जुड़ता ही जायेगा।
तन्हा ही आया था,
सोचा न था..
सब का साथ मिलता जायेगा।
गिनती के थे यहाँ बाशिंदे,
सोचा न था..
इतनी जल्दी ये आंगन महक जायेगा।
कहने को तो है यह एक ऑनलाइन दुनिया,
सोचा न था..
यहाँ भी परिवार मिल जायेगा।
हर कोई प्यार बरसाता जाता है,
सोचा न था..
यह फ़कीर भी यहाँ बादशाह बन जायेगा।
- साकेत गर्ग
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