तहज़ीब हाफ़ी
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा
मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है
बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूंगा सोचा था
तिरी जुदाई ही वजह-ए-नशात हो गई है
बदन में एक तरफ़ दिन जुलूअ मैं ने किया
बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है
मैं जंगलों की तरफ़ चल पडा हूंँ छोड़ के घर
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र
मैं नज़्म लिखने लगा था कि नात हो गई है
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तुम चाहते हो तुमसे बिछड़ कर भी खुश रहूं
यानी हवा भी चलती रहे और दिया भी जले ..!🖤-
रातें किसी की याद में कटती हैं
और दिन दफ्तर खा जाता है ,
दिल जीने पर माइल होता है तो
मौत का डर खा जाता है ।
सच पूछो तो तहजीब हाफी
मैं ऐसे दोस्त से आज़ीज हूं ,
मिलता है तो बात नहीं करता
और फोन पर सर खा जाता है ।।
- तहजीब हाफी-
मैं बैठा उस मुफ़लिस के पास वक़्त निकाल कर,,
उसकी बातों ने रख दिया मेरा दिल निकाल कर..
हैं ये बेबसी की उसकी आँखों के ख़्वाब मर गए थे,,
दुश्वार कितना है उनके रखना अज़ाब सँभाल कर..
वो हर दिन बड़ी मशक्कत से आबो दाना कमाता हैं,,
साँसे थमती हैं तब भी चलता हैं वो खून उबाल कर..
उसने हयात ए सफ़र के किस्से इस कदर सुनाए इन्दु,,
मैं ख़ामोश था पर जहन रो रहा था चीखें निकाल के..-
पराई आग पर रोटी नहीं बनाऊंगा
मैं बीग जाऊंगा छतरी नहीं बनाऊंगा
अगर खुदा ने बनाने का इक्तीयार दिया
कलम बनाऊंगा बरछी नहीं बनाऊंगा
गली से कोई भी गुजरे चोक उठता हूं
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊंगा
मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत जाऊं
तो इनकी औरतें कैदी नहीं बनाऊंगा.!
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मुझको डुबोया गया है किसी और जगह
मुझको डुबोया गया है किसी और जगह
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इतनी गहराई कहां होती है दरिया में..!🖤-
ये मोहब्बत है
कोई मज़ाक नहीं
इस तू निभा ले ,
ये तेरे बस की बात नहीं
हम तो आशिक़ है ,
दीवानगी हमारा नशा है
हम से इश्क तू बेवजह करले ,
इतनी तेरी औकात नहीं-
जहाँ पंखा चल रहा है वहा रस्सी भी पड़ी है
मुझे फिर खयाल आया अभी जिन्दगी बड़ी है..!!
_जुबैर अली 'ताबिश'-
कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
~Tahzeeb Hafi-
तू जिस तरह चूम कर हमें देखता है हाफ़ी
हम एक दिन तेरी बाज़ुओं में मरे मिलेंगें ।
@ तहज़ीब हाफ़ी
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