इश्क़ का चर्चा जब भी मुझसे होता है,
बस एक तुम्हारा चेहरा सम्मुख होता है ।।
दिल में मीठी मीठी यादें होती हैं,
आँखों से कुछ नीर टपकता होता है ।।
जब बातों में नाम तुम्हारा आ जाए,
दिल में मेरे अब भी कुछ-कुछ होता है ।।
लिख दूँ तेरी यादें जब भी पन्नों पर,
कागज़ पर हर लफ़्ज़ महकता होता है ।।
देखूं तेरी आँखें तो सब थम जाएं,
जैसे कोई दरिया ठहरा होता है ।।
पास तुम्हारे आया तब यह जाना है,
दूर रहना अब कितना मुश्किल होता है ।।-
लोग फिर बाबा बाबा कहने लगे ।
बीमारी है एक जिसका नाम है इश्क़
बाब... read more
कर लूंगा जमा दौलत ओ ज़र उस के बाद क्या
ले लूँगा शानदार सा घर उस के बाद क्या ||
मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा रिन्द
कर लूंगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या ||
होगा जो शौक़ हुस्न से राज़ ओ नियाज़ का
कर लूंगा गेसुओं में सहर उस के बाद क्या ||
शे'र ओ सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें
दुनिया में होगा नाम मगर उस के बाद क्या ||
मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँ मैं सैर
वापस वही पुराना नगर उस के बाद क्या ||
इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी
बुझ जाएगा चराग़े-क़मर उस के बाद क्या ||
उठी थी ख़ाक, ख़ाक से मिल जाएगी वहीं
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या ||
~ओम प्रकाश भंडारी "क़मर" जलालाबादी-
मौसम का हाल कुछ बेगाना हुआ है,
शजर से पत्तियों का जाना हुआ है ।
ये सिलसिला अभी शुरू ही हुआ था,
देखते देखते शहर ये अनजाना हुआ है ।
खिलौने की आस में बैठा एक बच्चा,
जिसके बाप को गुज़रे ज़माना हुआ है ।
वाकिफ़ हूँ इन ठंडी हवाओं से मैं,
उस बेवफा का शहर में आना हुआ है ।
इश्क़ का अंजाम कुछ हो न हो मियां,
हर आशिक़ ख़ुद में मयखाना हुआ है ।-
घेर कर उसको हवाएँ सुन रही थी दास्ताँ,
और बूढ़ी शाख़ जब खाँसी तो पत्ते गिर पड़े ।।
-स्वप्निल-
रात कर देती है टुकड़े टुकड़े,
एक सोता हूं, कई उठता हूं ।।
-ज़फ़र इक़बाल-
स्त्री जब विदा होती है, तो एक क्षण में विदा हो जाती है...
सभी सगे संबंधी लग के रोते है, आशीर्वाद प्रेम सब लुटाते है..
वो सारा प्रेम लेकर एक नई शुरुवात करती है..
दो परिवारों को जोड़ दोगुनी खुशियां लाती है।
पुरुष जब विदा होते है तो धीरे-धीरे विदा होते है,
पल-पल अंदर ही अंदर, सबसे संबंध फीके होते जाते है..
कोई रोता नहीं, ना वो खुद रोते है..
आगे भी तो बढ़ना है, जिम्मेदार बनना है,
अपने नए अपनों को खुश करने में खुद को ही खो देते है।
पुरुषों की विदाई दिखती नहीं महसूस होती है.. उनकी झूठी हसीं और सूखी आंखो मे..
विदा हुई स्त्री अपनों से दूर होकर भी अपनी रहती है,
विदा हुए पुरुष फिर कभी खुद के भी नही हो पाते।
~आकांक्षा-
प्रिय!……. लिखकर!
नीचे लिख दूँ नाम तुम्हारा!
कुछ जगह बीच मे छोड़
नीचे लिख दूँ सदा तुम्हारा!!
लिखा बीच मे क्या? ये तुमको पढ़ना है!
कागज़ पर मन की भाषा का अर्थ समझना है!
जो भी अर्थ निकलोगी तुम वो मुझको स्वीकार....
मौन अधर..कोरा कागज़ अर्थ सभी का प्यार!!
-आशुतोष राणा-
बहन अक्सर तुम से बड़ी होती है,
उम्र में चाहे छोटी हो,
पर एक बड़ा सा एहसास ले कर खड़ी होती है|
उसे मालूम होता है तुम देर रात लौटोगे,
तभी चुपके से दरवाजा खुला छोड़ देती है|
उसे पता होता है तुम झूठ बोल रहे हो,
और बस मुस्कुरा कर उसे ढक लेती है|
वो तुमसे लड़ती है पर लड़ती नहीं,
वो अक्सर हार कर जीतती रही तुमसे|
जिसे कभी चोट नहीं लगती ऐसी एक छड़ी होती है,
बहन अक्सर तुम से बड़ी होती है|
पर राखी के दिन जब एक पतला सा धागा बांधती है कलाई पे,
मैं कोशिश करता हूँ बड़ा होने की|
धागों के इस रार पर ही सही,
कुछ पल के लिए मैं बड़ा होता हूँ,
एक मीठा सा रिश्ता निभाने के लिए खड़ा होता हूँ,
नहीं तो अक्सर बहन ही तुमसे बड़ी होती है,
उम्र में चाहे छोटी हो, पर एक बड़ा सा एहसास ले कर खड़ी होती है|
- प्रसून जोशी-
दोस्त था मैं, फिर यार हुआ, अब दुश्मन हूँ,
जानें कितने सैलाब आने है रिश्तों में ।-