अपनी सिसकियों का शोर दबा न सका
वो जितना था उतना भी, बचा न सका ..
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(राजस्थानी💛🇮🇳)
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रुत, फिज़ा, मौसम, ये आलम सब तुम्हारे नाम है
फूल, खुशबू, चांद और बादल सब तुम्हारे नाम है..-
तय हो ना जब, होना प्रतीक्षा का
निकलेगा क्या करके समीक्षा का
प्रतिबंध लगा कर ,प्रेम करने वाले
प्रसारण कर रहे है कैसी शिक्षा का
जब मोल जाना जाते भिक्षुक का
लज्जित करता है ऐसी भिक्षा का
होकर करुण नित न्योछावर होना
वृक्षों ने मान बढ़ाया परम दीक्षा का
मिल जाए गर, सानिध्य उसका इंदु
कुछ हल निकलेगा, मेरी विवेक्षा का..
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कभी कभी, कब कहां नसीब चलता है
यहां रास्ता, मंजिलों के करीब चलता है
सड़कों से दूर बनी हुई पगडंडियां भी है
ये और बात उनपे बस गरीब चलता है..
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बिरखा री रुत कद आवेली
आसां री टाणी मुरझावेली
ओल्यू तो आवे पण सागे
नैण नीर, झर झर जावेली..
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पैर जैसे है, इस सफर में है
खैर उनकी हो जो घर में है
मुफलिसी ऐसी के छोड़े ना
जान, जाने के चक्कर में है
फुटपाथ, रोज़ सोचती होगी
वो भी जायेंगे जो बिस्तर में है
मुझको होना है उससे ज्यादा
जो लिखा हुआ, मुकद्दर में है
बेबसी भी तो अपनी जगह है
पर आग अपने भीतर में है
नूर ऊनका ही रह गया है इंदु
जो तीरगी की टक्कर में है..📝-
लुटाता रहा था जो, उसी, को लूट ले गया
लुटेरा था कोई ऐसा सभी को लूट ले गया..-