हमारे जुबा से निकली
हर बात भी तेरी हो गई|-
जब एक साधारण व्यक्ति सुन सान सड़क पे हो तो उसकी दशा कुछ इस प्रकार होती होगी।
थोड़ा-थोड़ा डरा सा सहमा सा, अपनी आँखों को इधर उधर दौड़ाता अपने पैरो के कदम को दुगना कर उस सडक को पार कर चला जाऐगा।
परन्तु जब एक लेखक उसी सुन सान सड़क पे हो तो वो उस सड़क के चारों तरफ अपनी आँखों को दौड़ाते हुए किसी किरदार को तलासता होगा जिस किरदार को निभाते हूए अपने शब्दो के गुथीयो को सुलझाते हुए वो किसी कहानी को जन्म दे रहा होगा।-
शाख से टूटे पत्तों से,
बस यही बात सीखी है।
सूख जाने पर-
अपने भी साथ छोड़ देते हैं।
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कुछ करके दिखलाना है तभी तो इतने
हरे भरे खिले हुए हैं, वरना
कभी का गिर जाते इस जिंदगी के रास्ते में
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बात तो तेरे थे ही अब याद भी तेरी हो गई,,
याद तो तेरे थे ही अब जज़्बात भी तेरी हो गई,,
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मानती हूं धड़कता दिल तुम्हें
मां ने दिया ,मां ही चाहती है
उस दिल में रहूं-