VANDANA VERMA   (वंदना वर्मा)
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Joined 7 November 2020


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Joined 7 November 2020
9 APR AT 20:18

आंखों में उसकी गुलाब, हाथो में उसके शराब
कैसे ना देखे उसके ख्वाब आखिर वो मेरे घर
का इकलौता दामाद...

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8 MAR AT 21:57

हर दिन मूर्छाये हुए हैं अजीज़ पत्थर से नही
प्रेमी से ठोकर खाए हुए है।

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23 FEB AT 7:04

कि मेरी हर एक बात को वह दिल पर लगा रहा हैं
मैं कोई fevi kwik तो नहीं जिससे वह
अपना दिल चिपका रहा हैं।

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19 FEB AT 18:10

कि औकात में रह, वक्त बदल रहा है
सपने हमारे भी, अब हकीकत में बदल रहे हैं

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18 FEB AT 21:16

तेरे इश्क़ पर नाज़ किए बैठे हैं
और तू नाराज़ होकर बैठा है।

हम तो पूरी साजिश किए बैठे हैं
और तू अफ़वाह समझ बैठा है।

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11 DEC 2023 AT 20:07

मैं साधारण सी लड़की, तू नटखट सा कृष्ण कन्हैया
मैं दीवानी तेरी और तू हजारों कि चाहत है सय्याँ

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9 DEC 2023 AT 20:50

अंधेरी रात में अरमान लिए
बैठे हैं अपने चांद संग तारों
को गिनने बैठे हैं।

दुनिया कि कश्मकश भूलकर
उनकी मुस्कान देखने
बैठे हैं।

पहले लड़ाई तो बहुत कि
अब उन लड़ाइयों पर
हँसने बैठे हैं।

कुछ तो नज़ाकत है उनमें
तभी तो हम उनके इतने
पास बैठे हैं।

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5 DEC 2023 AT 19:44

समाज खुश नहीं होता
जब पैदा होती हैं बेटियां...
पेट में भ्रूण हत्या की जाती है
क्या इतनी बुरी होती है बेटियां..

एक बेटी के बुरे काम से क्यों
बदनाम होती हैं सारी बेटियां...
बेशक देश आगे बढ़ रहा है लेकिन
सोच तो छोटी होती जा रही है
जब वन पीस पहनती हैं बेटियां..

आदर्शों से नहीं दुनिया कि नज़र में
घूंघट में योग्य होती हैं बेटियां...
लेकिन फिर भी रंग - रूप
नाक नक्स से तुलती हैं बेटियां..

पेरो से लेकर बालो तक परखा
जाता है कोई कुम्हार की बनाई
गुड़िया नहीं, ईश्वर की देन ही
होती हैं बेटियां...
और, समाज खुश नहीं होता
जब पैदा होती हैं बेटियां...

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3 DEC 2023 AT 20:28

मैं उसके पीछे और वो मेरे आगे खड़ा है
उसके हर एक कदम पर मेरा एक साल बड़ा है

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3 DEC 2023 AT 20:14

दुनिया भर कि चका चौंध देखकर
भी, मैं खुद को धुंधला पा रही हूं

खुद के इतने पास होकर भी क्यूं?
मैं खुद को समझ नहीं पा रही हूं

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