'सती वियोग'
द्वितीय सर्ग
(अनुशीर्षक में पढ़ें)-
'' प्रेम का स्वरूप ''
निश्चल प्रेम आसानी से नहीं मिलता है
क्योंकि महलों की रानी (पार्वती)
और अघोरी (शिव) की कहानी जैसा
प्रेम का आज स्वरूप नहीं दिखता ....
कृष्ण और राधा के जैसे बात बात
पर झगड़ने नाराज होने पर मनाने
वाला प्रेम का आज स्वरूप नहीं दिखता ....
सियाराम के त्याग ,विश्वास
और दूर रहकर सच्चे प्रेम
को निभाने वाला प्रेम का
आज स्वरूप नहीं दिखता....
पति की मृत्यु पर शोक ना जताकर
अपने प्रेम के लिए यमराज से लड़कर
अपने पति को जीवन देने वाली सावित्री
के प्रेम जैसा आज स्वरूप नहीं दिखता ....
सच्चा प्रेम देह का क्षुधा नहीं होता है..
इसलिए सच्चे प्रेम की कहानियों का
स्वरूप आज के प्रेम में नहीं दिखता ....
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हम हाथों की लकीरों पर नहीं, लकीर बनाने वाले पर विश्वास रखते हैं ॥
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प्रेम-ज्योत का दीप जलाए, मन में यह आस है ;
शिव-शक्ति सी जोड़ी होगी हमारी, महादेव पर विश्वास है...-
मेरे प्यार को अनाड़ी समझती हैं
शिव की तरह और रकीब की
बाहों में लिपट कहती हैं
मैं पारवती सी प्यार
करती हूं उसे...!!!-
हर हर महादेव
शिव पार्वती के जैसा सुन्दर मन
आपके चरणों की थोड़ी सी धुल
कैलाश पर्वत की वो खुशबू
शिवरात्री के दिन जैसा मंगलदिन
भांग धतूरे सा वो शीतल जल
सपनों के जैसा ही खूबसूरत मंजर
सुरम्य गीतों पर लास्या नृत्यांगना
शिव का वो तांडव सा नृत्य
शिव की भक्ति का आधार है
काल के सामने किसकी चलेगी
होगा तीसरी आंख का वो प्रलय
जप के देख ले शिव शंकर रे इंसान
-📝Jyoti Choudhary (monu)
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जिसने अपनी भक्ति से मुझे जीत लिया वो शक्ति हो तुम........
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Na bnna tum krishn
Me na Radha ban pau
Na bnna tum ram
Me na sita ban pau
Milna to kuchh aise milna
Tum mere shiv bnna aur
me tumhari Parvati ban jau-
शिव के दरबार से हो कर आयी हूं
उनकी तरह हर किसी को प्रेम मिले ये उनसे मन्नत मांग आयी हू-
समर्पण हो सती सा
पूर्ण एक-दूजे से शिव-शक्ति
प्रतिक्षा हो शिव सी
मिलन हो जैसे शिव-पार्वती-