मिले नयन जिस क्षण तुमसे
तुम ही मेरा आधार बन जाओ,
राम जैसे सिया के
पा कर तुम मुझे मेरे कहलाओ।
त्याग कर महलों सा सुख
तुम संग वन भी रह जाऊँ,
सिया की जैसे राम संग
मैं तुम संग प्रीत निभाऊँ।।-
🎂 31 may
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस... read more
कभी गुस्सा हो तुझसे किसी बात पर नाराजगी जताती हूँ
जिद्दी बन तेरी ना मान अपनी बात मनवाती हूँ,
माफ करना मुझे तू जानती हैं ना तेरे लिए हमेशा
बेटी तेरी नादान है माँ।
अपना हर दर्द परेशानी हमारे लिए भूल जाती है
खुशियों के लिए हमारी सब कुछ सह जाती है,
बन जाऊँ जब काबिल सभी पूरे करना चाहती हूँ
जितने भी तेरे अरमान है माँ।
तेरा साथ ना हो जब पास मेरे ये सोचना भी मुझे पसन्द नहीं
डर लगता है क्या होगा मेरा तेरे बिना मैं कुछ भी नहीं,
कहने को तो बहुत बड़ी हैं ये दुनिया पर
कहाँ कोई तेरे समान है माँ।
बचपन से ही सिखाया तूने हमेशा पहले भगवान जी को पूजना
सुख में या दुख में वो हमारे साथ होते है उन्हें कभी मत भूलना,
पर मेरे लिए तो तू ही मेरा
पहला भगवान है माँ।।
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याद रख प्रयत्न पूरा कर
जीत को निश्चित ठान,
हकदार हो गर जीत के
उस हार में भी मान।
ठोकरों से मत घबरा
निरन्तर रख बढ़ने की होड़,
डटे रह हर हाल में
पीछे मुड़ने का विकल्प छोड़।
गिरकर भी फिर से उठ
और जीत को ललकार,
ना बैठ निराश होकर
अपनी कमियों को सुधार।
रुकना नहीं राह पर
जीत होगी या होगी हार,
कदम फिर बढ़ा आगे
जिंदगी का यहीं सार।।
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तुम खुद को देखे बिना मुझे दोषी ठहराओ
मैं नहीं कहती हमेशा मैं ही सही हूँ
गलती जब मेरी हो तो मैं स्वीकार जाऊँ
पर जहाँ मैं जानती हूँ मैं सही हूँ तो परवाह नहीं मुझे
फिर चाहो तुम मैं झुककर हर बार तुम्हारे पीछे आऊँ
तो हाँ मैं बुरी हूँ।
तुम चाहे खास हो मेरे लिए पर मेरी बात
सुने बिना ही मुझसे रूठ जाओ
कहाँ गलत थी मैं मुझे मेरी गलती भी ना बताओ
फिर चाहो तुम कि मैं ही तुम्हें मनाऊँ
तो हाँ मैं बुरी हूँ।
तुम मेरी छोटी-छोटी कमियों और गलतियों
को बहुत बड़ा बताओ
किया हो बर्ताव बुरा और जब मन करें अपनापन जताओ
फिर चाहो तुम मैं सब भूलकर अच्छी तरह पेश आऊँ
तो हाँ मैं बुरी हूँ।
तुम रहो व्यवहार अच्छे तो मैं और अधिक अच्छी रहूँ
जो हो नाता करो कद्र तो साथ निभाऊ
पर तुम बिना बात के मुझे बुरा-भला सुनाओ
सिर्फ जरूरत पड़ने पर अच्छा बन जाओ
फिर चाहो तुम कि मैं तुम पर यकीन कर जाऊँ
तो हाँ मैं बुरी हूँ।
-✍ Gunjan Pandey
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समर्पण हो सती सा
पूर्ण एक-दूजे से शिव-शक्ति
प्रतिक्षा हो शिव सी
मिलन हो जैसे शिव-पार्वती-
पिंजरे में कैदी पंछी
पहचान अपनी खो रहा,
बंधनों से मुक्ति चाहता
मन ही मन हैं रो रहा।
मजबूरी ये पंछी की
जबरन बंदिशे सहना,
जन्मा है सुंदर पंखों में
और पड़ता कैद रहना।
खुश नहीं वो इसमें
हर तरफ से गया घेरा,
खुद बना लेगा वो घर
प्रकृति में ही है बसेरा।
कई बार देखा पिंजरे से ही
बाहर पक्षियों का झुण्ड जाता,
काबिल है वो भी उड़ जाने के
काश संग में उड़ पाता।।
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जब पूछा किसी ने ये तो हर कोई था मौन,
माँ सा निस्वार्थ प्रेम किसी से करता है कौन ?-
शीश गज का धारण किये देवों में तुम प्रथम पूज्य कहलाये हो।
कर परिक्रमा माता-पिता की
उनकी चरणों में ही है सर्वोच्च स्थान जग को यह बतलाए हो।।
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कुछ पाकर भी खो दूँ
उसे अपना ना मान
मुस्कुरा देती हूँ।
गलत नहीं हूँ चाहे
रहकर चुपचाप
मुस्कुरा देती हूँ।
कोई साथ छोड़ दे तो
उससे हो अन्जान
मुस्कुरा देती हूँ।
स्थिति जो भी
सहकर हरहाल
मुस्कुरा देती हूँ।
नम हो जाए आँखे जब
फिर ला नई मुस्कान
मुस्कुरा देती हूँ।।-
भानु की अनुपम किरणें मेघों की चंचल छटा
नितदिन छाया चहुँ ही प्रकाश,
रात्रि चन्द्र और अनगिनत तारों से सुसज्जित
वृहत् सुरम्य यह उज्ज्वल आकाश।
पवन-नीर-पुष्प-तरु-पर्वत-वन मनोहर
हरेक ऋतुओं में ही निखरती,
समस्त प्राणी, जीव-जन्तु, भव धारण किए
निश्छल अलौकिक यह जीवनदायिनी धरती।।
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