हां,,,,, मैं शिक्षक हूँ!
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को गावे गुरू की महिमा?
को गुरु को सूरज दिखलाए?
गुरु ज्ञान जो तमिर भगाए ,
शिष्य को ज्ञान प्रकाश में लाए।
गुरु चरण में स्वर्ग बसे है,
गुरु शरण है धाम हमारे।
गुरु आशीष जाकूँ मिल जाए,
जनम जनम के भाग सुधारे।
गुरु आदेश मस्तक धर राखो,
गुरु सेवा में रैन-दिन जागो।
मुख से गुरु-शिक्षा गायन हो,
गुरु की आज्ञा का पालन हो।
मैं करूँ चरण धूलि को धारण,
चरणों का अमृत पान करूँ।
शीश झुकाकर सहज भाव से,
उनके चरणों को प्रणाम करूँ।
गुरु के कर सर पर जाए,
मैं भवसागर पार जाऊँ।
वंदन कर गुरु की दिव्यता,
मैं कठिन परीक्षा पार पाऊँ।
गुरु वाणी को निज दोहराऊँ,
गुरु की महिमा नित-नित गाऊँ।
मोहे मिले चाकरी गुरु सेवा की,
गुरु को पूज के मैं तर जाऊँ।-
शिक्षक
शिक्षक हूँ मैं
पहुंचाऊँगा हर छात्र को
मंज़िल तक उसकी
मैं रहूँगा वहीं खड़ा
शिक्षक हूँ.........
पूरी कविता caption में पढें।-
* निखरते ~ अल्फ़ाज़ *
" जब कभी फिसलने लगे मेरे कदम ,
संभल कर चलना सिखाया गुरुओं ने !
खुद पिघलते रहे हर वक्त मोम की तरह ,
मेरे जिंदगी में उजाला किया गुरुओ ने !! "
- ' धनन्जय निरापुरे '
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मास्टर जी गुल्लू की बेंच के पास खड़े हो कर, गुल्लू को खड़ा कर, गुल्लू की ढीली निक्कर को देखते हुए - तेरी निक्कर कहां जा रही है ?
गुल्लू - कहीं नहीं मास्टर जी मेरे पास ही है...
क्लास में हंसी की आवाज़
मास्टर जी ने चश्मे से आंखें निकालते हुए सभी को देखा। सभी चुप...
मास्टर जी मुड़ कर वापस जाने लगे तो उनकी धोती गुल्लू की बेंच की कील में फंस गयी।
गुल्लू चिल्लाया- मास्टर जी आपकी धोती...
मास्टर जी नीचे देखते हुए - कहां है ?
गुल्लू - मास्टर जी यहां, मेरी बेंच में...
क्लास में हंसी की आवाज़
मास्टर जी ने चश्मे से आंखें निकालते हुए सभी को देखा। सभी चुप...-
जब कोई,
मदद का हाथ ऐसे बढ़ाए
कि जैसे देना नहीं बल्कि
डट कर लड़ना सिखाए,
मदद उस वक़्त
वर्तमान ज़रूरत को
पूरा करने के साथ-साथ
बहुत कुछ पूरा कर जाती है।-
कलम दे दिया बाबू ने खरीदकर
अब ज्ञान कहाँ से लाऊँ ?
एक शिक्षक ढूंढ दो बाबू
उसका शिष्य मैं बन जाऊँ !
एक कली भी करूँ अर्पित जो
चरणों में जाकर उनके खिल जाए !
ज्ञान के गगन में उनका दिया ज्ञान
इंद्रधनुष सा छा जाए !
सियाही बन कलम की मेरे
मुझे मेरे अस्तित्व से अवगत करवाए !
करूँ भविष्य में जो बेहतर कुछ
तो मुझसे पहले नाम उनका लिया जाए !
ऐसा इंसान बनाया है ईश्वर ने
जिसका ईश्वर से भी ज्यादा है मान !
शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर
ऐसे गुरुवर को हम सबका प्रणाम !!-
मेरी मुफ्त की नोकरी नहीं है ,,,
सब कहते हैं , बस बोलना ही तो है ...
पर ये बोल भी तो आसान नहीं है़ं !!!!
सच कहता हूं मेरी मुफ्त की नोकरी नहीं हैं ...
सब कहते हैं, बच्चों को अच्छी शिक्षा दो ,,,
और जरूरत पडे तो हाथ भी उठाओ !!!
पर किसी बच्चे को अपना समझ के उसपे यूं हाथ उठाना आसान नहीं हैं ,,,,,
हांँ, मेरी मुफ्त की नोकरी नहीं हैं .....
बच्चे के न0 अच्छे आए , तो बच्चे को शाबाशी देते हो,,,
और न0 कम आए तो मुझे कोसने लगते हो,,,
तुम समझते क्यूं नहीं, ये मेरी कमी नहीं हैं !!!
हाँ ! मैं एक शिक्षक हूँ ,और मेरी मुफ्त की नोकरी नहीं हैं ....-
शिक्षक..🖋
(समस्त शिक्षकों को समर्पित एक लेख.. 🙏)
एक बार अवश्य पढें, अच्छा लगेगा!-
Shikshak yun hi nahi mahaan hota hai.
Inhe har barikiyon ka Gyan hota hai..
Karte hai Jo galtiya hum, un galtiyon ka bhi samadhaan hota hai.....
Shikshak yun hi nahi mahaan hota hai..
Hum shishyo ke liye vardaan hota hai...
Choti choti ungaliyon ko kitna kuch sihkaya tha..
Kartavya, karm aur kalpana ka paath tune hi padhaya tha..
Duniya ke is khathinai me saralta ka margh dikhaya tha..
Us khathinai ke andhere mai, dip Gyan ka jalaya tha...
Gyan ke us Dipak ne mujhme esa vishwas jagaya tha..
Tabhi har shishya apna path haasil kr paya tha..
Us school ke raah Tak maa baba ne pahuchaya tha..
Krna chahta tha jab apne mann ki, maa baba ko samjaya tha..
Tera mujhme vishwas dekh mann, Papa ka bhar aaya tha..
Tab Papa nee Honhar beta kahke maan badaya tha..
Par Meri mazil ka marg tune hi dikhlaya tha....
Us manzil ko paake bhi na tune shrey uthaya tha..
Tab jaake shikshak ke sneh ko Mai nadan smajh paaya tha..
Tab jaake shikshak ke sneh ko Mai nadan smajh paaya tha..-