चली गयी माँ तू इस दुनिया से
बिना कुछ बोले
दहाड़े मार मार कर रो रहे हैं
वो ऊन के गोले
जिनसे तू मेरा स्वेटर बनाती थी
सलाइयों में बुन कर मुझे प्यार पहनाती थी
घर भी सिसक रहा है आज
दुबक कर एक कोने में
ऐसा महसूस होता है
है मशगूल सारी कायनात रोने में
अपने हाथों में सहेज कर रखा जो तूने
छोड़ गयी आज वो परिवार
ऐसे खड़ी रह गई मैं तो
जैसे गला काट गई मेरा तलवार की धार
अब तो जीवन लगेगा ऐसा
जैसे कोई पथरीला पहाड़ चढ़ना
ठहर गया है वक़्त भी उसी पल में
जम गए कदम,कैसे होगा आगे बढ़ना
माँ तू लौट कर आजा
तेरे बिना जिया नहीं जाता है
बह न जाए कहीं इसमें ये दुनिया
आँखों में मेरी ये जो समंदर भर आता है
भावना तोमर
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माँ का आँचल छूट जाना मानो जीते जी मर जाना
कुछ भी कर लें हम चाहे नहीं भर पाएगा ये हरजाना
माना कि अब मुमकिन नहीं माँ के आँचल में सोना
दुनिया से दुखी होने पर माँ के सीने से लग कर रोना
दूर हो भले ही मुझ से फ़िर भी माँ मेरे दिल में रहेगी
कभी बनेगी होठों की मुस्कान कभी आँसू बन आँखों से बहेगी
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साथ निभाने की कसमें तोड़ी तुमने
ये देख कर ज़िंदगी भी हैरान है
रंग दिया ख़ुद को तुम्हारे ही रंग में
भूल गई कि मेरी भी कोई पहचान है
हालत मेरे दिल की क्या हो गई है
इस बात से ज़ालिम क्यों अनजान है
सांसे भी मेरी बस अब बंद होने को हैं
क्यों नहीं तुम्हें इस बात का भान है
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मुश्किलें तो आती हैं जीवन में
आसान तो कुछ भी नहीं होता
इसका मतलब ये तो नहीं कि
रहेगा तू सदा किस्मत पे रोता
आएंगे मोती भी कभी हाथ में
लगाता रह तू सागर में गोता
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निकल जाऊंगी
किसी दिन मैं
एकांत की यात्रा पर
फ़िर तुम मेरा
मत खींचना हाथ....
अब तो तुम्हें
नहीं चाहिए साथ...
दुत्कार तुम्हारी
कब तक सहूंगी...
तुमसे तो मैं
कुछ नहीं कहूंगी...
पर इतना सह के
मै इंसान न रहूंगी...
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जो हौसला बुलंद रखते हैं
उड़ान आती है उनके हिस्से में
जो हौसलों के पंख रखते हैं-
मुसाफ़िर हैं हम
और ज़िंदगी एक सफ़र
कब कौन सा पड़ाव आए
हमको क्या ख़बर
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सफ़र है जिंदगी
और हम हैं मुसाफ़िर
आज बिछड़ गए तो
मिलेंगे कभी फ़िर-
प्रणाम हे शिक्षक,तुम देश का भविष्य बनाते हो
हर काँच के टुकड़े को तराश कर हीरा बनाते हो-
हर सांस का हिसाब दर्ज है
उसकी किताब में
जब सांस है तब तक ही रह सकते हैं
जिस्म रूपी लिबास में
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