हे पुत्र!सीख लो तुम,
नारी का सम्मान करना।
हो सके तो कृष्ण बनना,
तुम न दुशासन बनना ।
कौरवों की तो बात छोड़ो,
नहीं है तुम्हें पांडव बनना।
नहीं है तुम्हारी जागीर वो,
न कभी उसे वस्तु समझना।
होती है घर की इज़्ज़त जो,
नहीं उचित उसका दांव पर लगना।
हो रहा हो जो अपमान उसका,
न तुम मूक दर्शक बनना।
नारी का दर्जा बहुत उच्च है,
न उसे कमतर समझना।
पहले तुम ख़ुद को बदलो
फिर समाज को बदलना।
ले सकें जिसमें खुलकर सांस
बेटियों के लिए ऐसा कुछ करना।
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