अलविदा yq 🙏
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ना काहू से बैर
नहीं हम में कोई अनबन नहीं है
बस इतना है के अब वो मन नहीं है
मैं अपने आप को सुलझा रहा हूं
तुम्हें लेकर कोई उलझन नहीं है-
इसका मतलब ये नहीं कि मुहब्बत नहीं है
हमनें अब तुम्हें ख़ुद में बसा लिया है
तुम्हें पा लेने भर की सनम चाहत नहीं है-
वो हक़ीक़त में मेरे ख़्वाब सा है
मैं आफताब वो महताब सा है
उसको जितना पढ़ूं उतना कम
वो कोई इबारतों की किताब सा है
मेरे जहन में है रवानगी बस उसकी
वो मेरे हर सवाल का जवाब सा है
मेरी ज़िंदगी में महक है बस उससे
वो गुलबदन बिन कांटों का गुलाब सा है
उसको देख भर लूं तो सुरूर हो जाए
उसका दीदार ही जैसे शराब सा है
लिखने वाला उस पर उपन्यास लिख दे
वो हिंदुस्तान में जैसे पाक पंजाब सा है
वो हक़ीक़त में मेरे ख़्वाब सा है
मैं आफताब वो महताब सा है
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मेरे चेहरे से झलकती है फ़िक्र ओ तबीयत तेरी
जो भी देखता है पूछता है सनम तुझे हुआ क्या है-
अगर मुहब्बत दिल से निभाई जाती है
तो ये
चूड़ी बिंदी बिछिया
ये पायल नथ किसलिए
तोड़ दो मंगल सूत्र
छोड़ दो रिवाज
लाज का घूंघट किसलिए-
ऐ मुहब्बत तेरे सारे तमगे तोहफे क़ुबूल मुझे
अब नज़र से गिरा या कर दिल से दूर मुझे-