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सुना है
आज फिर किसी शातिर शिकारी ने जाल डाला है
उस थके परिंदे को फ़साने आयाम ड़ाला है
मग़र aye शिकारी ae जान ले
वो अभी थका है उसकी मिलों की उड़ान अभी बाकी है-
वो खुले शिकारी , हम पर मेहरबान कैसे हो गए ?
वो देश बेचने वाले हाँ भला , इंसान कैसे हो गए ?
बदला बदला सा सब ही कुछ नज़र आता है ,
हाँ भला वो विष से , यूँ पकवान कैसे हो गए ?
जो चूसते थे कल तक , एक एक बूँद मेरे खून कि ,
हाँ वो कसाई खुद भला , भगवान कैसे हो गए ?
अब समझ में आया ये मौसम चुनाव का है ,
मैं सोचता था चोरों के मोहल्ले , सुनसान कैसे हो गए ?-
अवसरों की ताक में बैठे हैं शिकारी यहाँ
पंछियों ! ज़रा संभल कर उतरना-
मेरे ख़िलाफ़ बोलना बन्द कर नही तो तुझे मारने का विचार हो जाएगा,
ज्यादा शेर बनने की कोशिश न कर लाड़ले
हम शिकारी हैं शिकार हो जाएगा...-
बात हमेशा वो करो..
जो लगे ना दिल मे किसी के..
भूल जाते है अक्सर लोग..
एक दिल तो उनके पास भी हैं..-
ऊंची उड़ान
अपने हौसलों के साथ
लेकिन कड़वा सत्य है कि उसके
पीछे इस दुनियां में कोई
शिकारी नहीं चाहिए
justice for SSR-
Shikari toh kamal ke h aap,
Bs shikar naasamaj naTaqat nikla aapka
Esme Aakhir aapka kasoor hi kya h...-
कहीं दाना चुगाने को कबूतर पाल लेते हैं
वही फिर अपनी मर्जी से तो इस्तेमाल लेते हैं
जो खाए मुफ्त का दाना जरा खुद को संभालो तुम
फसाने को परिंदें और, शिकारी जाल लेते हैं।।।
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