Archana sharma   (Archu....)
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Joined 20 April 2019


Joined 20 April 2019
YESTERDAY AT 13:51

समझदारी शोर नहीं होने देती,
पनप रहा है जो होले-होले
वो उसे कमज़ोर नहीं होने देती!.....

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YESTERDAY AT 13:41

Jiske sath sukun bhut milta h
Vo shaksh zindagi bhr ke liye nhi milta h...

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YESTERDAY AT 13:39

ये दिलों में मोजूदगियाँ भी क्या खूब होती है,
वो नहीं होते फिर भी महसूस होते है!....

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21 APR AT 20:24

क्या हासिल करना है
ये तो मुझे खुद नहीं पता,
बस कोशिशें इतनी-सी है
की जो मिलें सफ़र में
उनसे सीखती जाऊँ..
वक़्त, बेवक़्त
यूँ ही मुस्कुरा-के
किरदार को अपने
निखारती जाऊँ।....

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21 APR AT 19:41

"ठहराव एक सुकून"

दौड़ तो हम सब रहे है,
लेकिन आपके इस ठहराव भरे लहज़े ने
मुझे ज़िन्दगी जीना सीखा दिया।
मैं हमैशा सोचती थी,
क्या सच में ये ठहराव भीतर से आनंदित रखता है,
आपको देख के मुझे मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गये।
समझ आ गया की,
वो जो दूसरों को उठाने की कोशिश करते है,
वाकई में कमाल का व्यक्तित्व रखते है।
मुझे ज़िन्दगी से कभी कोई शिकायत तो नहीं थी
लेकिन उलझनों में इतना उलझी पड़ी थी,
की रोशन-सी राहों में भी अँधेरे नज़र आते थे।
हमैशा एक डर सा रहता था मन में,
पता नहीं क्यूँ
लेकिन जीवन का कोई लक्ष ही नही था।
आप ने तो आके
मेरे मन की गुत्थियों को ऐसे सुलझा दिया,
जैसे एक पिता अपनी बेटी को
सही राह पर चलना सिखाता है।
सच मे जब कोई अपना हाथ आगे बढ़ाता है,
तो डर नहीं उम्मीद पनपती है..
एक नये विश्वास का जन्म होता है,
की ज़िन्दगी का अगला पड़ाव जो भी होगा
बस दिलचस्प होगा।......

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20 APR AT 0:34

कुछ दुःख हम स्वंय बौते है,
जिन चीज़ों को हँस के टाल सकते थे
उन्हें दिल-से लगा लिया।....

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19 APR AT 20:31

किसी और को तोड़कर तुम कभी खिल ही नहीं सकते...
...
..
.

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19 APR AT 20:15

पहले इत्फ़ाक से अकेले छूट गये थे,
और अब अकेले रहने में मज़ा आने लगा है।
अजीब ज़िन्दगी है
जब साथ चाहिये था तब सन्नाटा था,
और अब सन्नाटे से इश्क़ हुआ है
तो ज़माने में शोर बहुत है!!!

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17 APR AT 23:50

ये एहसास होना
की किसी-न-किसी मोड़ पे तो यार
हम भी गलत हो सकते है..
कितना खूबसूरत है ना
खुद-को खुद-की नजरों से देखना..
खुद का फिर थोड़ा-सा बदल जाना
लहज़े में नरमाहट आना..
सच कितना सुकून देता है
खुद को वक़्त देना,
अपनी अच्छाई-बुराइयों को यूँ परखना
और ज़िन्दगी का यूँ अनेक रँगों में मुस्कुराना....

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16 APR AT 16:24

कभी-कभी हम खुद से ही थक जाते है
ऐसे में हम खोजते है किसी अपने का सहारा,
जो भले ही साथ न चले हमारे
बस इस थकान को उतार दे
करके दिल-से-दिल की बात
कभी दौ कप चाय की प्यालियों का सहारा ले
तो कभी ख्वाबों की एक सैर कर
रुक-कर-के हक़ीक़त से रूबरू करायें।
भले ही रास्तों पे साथ न चले
बस गले लग के एक हौंसला दे जाये
की आगे का सफ़र आसान है
मुश्किल लगता है
लेकिन सब सरल है बिल्कुल तुम्हारी तरह...

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