पूछ रही है ये शाम मुझसे
उसके दूर जाने का गम है तुझे
या वो खुश है इस बात का
सुकून है तुझे-
कभी मिलते है एक रोज अकेली शाम कीं तरह,
तुझे चाहूंगी उस रोज मै ऱमजान कीं तरह...!!!
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रात के इंतज़ार में सुबह से मुलाकात हो गई
शायद कल की वो शाम ढलना भुल गई
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यूं शाम उतरती है दिल में
नज्म रोशन हो भरी महफिल में,
यूं तो हम संजीदा नही थे कभी,
पर तेरे अश्को में बह गये हम भी
लाख कोशिश कर लो छुप सकते नही,
छलकते सैलाब ढल रहे पहलू में,
बैचेन है सितारे बिखरने को वहां,
ढ़ल रही है शाम यूं दुप्पटे में कही..alka
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Yun shaam utarti hai dil me
Jaise tu yaad aya ho mahfil me.
Har khwab adhoora hai mera
Har chah dabi hai is dil me.
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यूं तो देखी हैं और भी खूबसूरत चीजें हमने
मगर ढलती शाम सी किसी में बात कहां !!-
किसी ने पूछा तेरे मुस्कान के बारे में,
मैंने 'अवध की शाम' लिखा!
किसी ने पूछा इक खूबसूरत लफ्ज़,
मैंने 'तेरा नाम' लिखा!
किसी ने पूछा तेरा नूर बयाँ करूँ,
मैंने क़ुदरत का 'सबसे सुंदर काम' लिखा!
किसी ने पूछा बोलती कैसा है,
मैंने 'बंशी बजाते श्याम' लिखा!
किसी ने पूछा कितना निर्मल है व्यवहार,
मैंने 'गंगा का पानी और चारो धाम' लिखा!
किसी ने पूछा तेरा उसका मिलन कैसे,
मैंने 'अच्छे कर्मो का ईनाम' लिखा!
किसी ने पूछा क्या रिश्ता है तुम्हारा,
मैंने 'सीता और श्रीराम' लिखा!
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सफ़र-ए-ज़िन्दगी में कुछ शामों को यूं भी गुज़ारा जाए
उस नक़्श-ए-दिलनशीं को अपनी निगाहों में उतारा जाए
अर्श पर सितारों की महफिल में, चांद तन्हा ही है मगर
आरज़ू है कि उसके पहलू में बैठ, ख़ुद को संवारा जाए-
तेरे दर पर बैठकर ...
शाम से सहर(सुबह) हुई...
पर क्यों मेरे इंतजार की...
तुझको ना खबर हुई...-
पलके बिछा रखी है
हवाओं से शर्त लगा रक्खी है
दीया बुझने न देंगे हम
जब तलक मेरे चौखट पर न पड़ेंगे तेरे कदम
बादलों ने भी साजिश की है
मेरे अरमानों को भिगोकर
सनम तुम कहाँ हो बैरी बना है ये मौसम
शाम होने वाली है आ भी जाओं तुम
निगाहें बिछाये अपलक ताकतें हैं मेरे नैन-