जनमानस की चेतना, तुम ही जन आधार
जनता आज पुकार रही, क्यूं चुप हो तुम कविराज,
मीडिया,नेता,बिजनेसमैन जहां इनमें से किसी से उम्मीद नहीं रही,
वही तुम्हारी ओर उम्मीद की किरण सी नज़र आती है,
अरे! शिव के तीन नयन बंद है अपने दो तो खोलो
कविराज आओं बोलो
राम की ही प्रकृति है प्रकृति में ही राम,
हसदेव की कटाई पर लगवा दो पूर्ण विराम
आज अगर चुप रहे तो कल ये तुम्हारे साथ भी होगा,
नेताओं की सांसें तो पैसों और कुर्सी से चलती है,
ऑक्सीजन की जरूरत तो बस हम आम लोगों को ही है ।।
#savehasdeoforest
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प्रिय बंधु, मै हसदेव की जंगल बोल रहा हूँ.
मुझे पता नही की आप कौन है हो सकता है आप मजदूर हों
अध्यापक हो, किसान हो, छात्र हो, व्यापारी हो अधिकारी हो या फिर कोई आम नागरिक हो, आप चाहे कोई भी हो यदि आप चाहें तो आपके प्रयास से मै बच सकता हूं। यदि मै समाप्त हुआ तो आपका जीवन भी समाप्त हो जायेगा। आपको शायद ज्ञात नहीं कि छत्तीसगढ़ में मानसून लाने में मेरा महत्वपूर्ण योगदान है। यदि मानसुन ही नहीं आया तो फसल कैसे उगावोगे मेरे बीना तुम दाना दाना को तरस जावोगे मेरे अंदर छिपे चंद कोयले से तुम कब तक मुफ्त बिजली पाओगे मैं न रहूं तो सूरज की गर्मी में पिघल जावोगे कोरोना में आक्सिजन की कमी को क्या तुम भूल गये मै कट गया तो मेरा प्रकोप न सह पावोगे । चंद पैसों के खातिर यदि मेरा अस्तित्व मिटावोगे याद रखना प्यास और भूख से तड़प तड़प मर जावोगे दस सालों से मैं कानूनी लड़ाई लड़ रहा हूं पर हर बर छला जाता हूं कभी शासन प्रशासन तो कभी अपनों से ही धोखा खाता हूँ। मै हसदेव बोल रहा हूँ, हसदेव बोल रहा हूँ, हसदेव बोल रहा हूँ-
शायद हम कोरोना जैसे महामारी से भी न सिख सकें,
अरे भाई! अब तो कुछ सीखो कोरोना से, आओ हसदेव बचाए!
कोरोना महामारी में कितना मुश्किल हो गया था ऑक्सिजन का मिलना।
अरे भाई! अब तो कुछ सीखकर कोरोना से, आओ हसदेव बचाए!
तरक्की का रास्ता सिर्फ जंगल उजाड़ कर नहीं बनता,
अरे भाई! तुम तो इंसान हो पेड़ो पर दया करो, आओ हसदेव बचाए!
पेड़ो को कटने से बचाए, आओ हसदेव बचाए।
#SaveHasdeo🌳-
#savehasdeo #savenature
ये सुहावनी ताजगी भरी हवा, मधुर संगीत से भरी कोयल की कूक, क्या ये कहीं विलीन होने को है, बचा लो साथियों, हमारी जीवनदायिनी प्रकृति उजड़ने को है......
वो झरने की झंकार, नदी की चट्टानों के साथ हुंकार, वो ऊंचे पेड़ की सुकून भरी छांव, प्रकृति की गोद में बसा मेरा छोटा सा गांव, क्या ये सब हमारे खोने को है, बचा लो साथियों, हमारी जीवनदायिनी प्रकृति उजड़ने को है..
वो जंगल नही, हमारे सांसों का किस्सा है, दिल का टुकड़ा हो जैसा, प्रकृति का वैसा हिस्सा है, नाश हो रहे जंगल, प्रदूषण से बुरा हाल है, फिर भी अभी तक, प्रकृति बचाने पर सवाल है, क्या हम अपने अस्तित्व खोने को हैं... बचा लो साथियों,
हमारी जीवनदायिनी प्रकृति उजड़ने को है.....
#savenature
#savehasdeo-
Save_Hasdev #Save_earth
अगर हसदेव अरण्य के लिए आवाज न उठा सकें,
फिर हमें "पर्यावरण दिवस" मनाने का कोई अधिकार नहीं।-
अगर सच में इंसान हो तो हसदेव बचाओ,
क्या है कांग्रेस...?
क्या है भाजपा...?
दोनों पक्षों में से कोई आवाज तो उठाओ।-
छत्तीसगढ़ के बग़ीचे में अब शायद रहूँगा मै शान से।
खो रहा हूँ अपना अस्तित्व,जो रहता था पहचान में।
हर जीव हो जाएंगे बेघर कैसे दूंगा उनको मकान मे?
जब हो जाऊंगा तबाह तो कैसे पनपे गा नया जहान ये?
अगर आज मैं न रहूँगा तो तुम मनुष्य भी कैसे बचोगे?
कोयले को ही कब तक स्वर्ग से निकालने की सोचोगे?
अगर करना हो कुछ मेरे लिए तो बस इतना एहसान करना।
मेरे ही तरह किसी और जंगल को काटने की भूल मत करना।।
#savehasdeo
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मुझे क्या मतलब इन पेड़ों और वनों से,
मैं AC की ठंडी हवाओं में कैद हूँ।
मैं समाज की लड़ाई लड़ता एक अद्भुत संगठन,
अपनी कमीशन ना मिलने तक हर मुद्दों पर मुस्तैद हूँ।
विपक्ष में रहकर करता हूँ विरोध गैर कामों का,
सत्ता आते ही काले कामों पर भी मैं सफेद हूँ..
मैं शांति का भूखा,अशांति पर मौन लिए ।
इस चक्रव्यूह में फंसा स्वयं ही मटियामेट हूँ।
कहलाता हुं सहचर इस पावन प्रकृति का,
दस वृक्ष रोप कर लाखों का करता आखेट हूँ ।
विपक्ष में रहकर करता हूँ विरोध गैर कामों का,
सत्ता आते ही काले कामों पर भी मैं सफेद हूँ...
-प्रवीण रवि
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|| हसदेव बचाओ ||
पेड़ों में तो प्राण बसे हैं,
हर मनुज-मनुज की जान बसे हैं।
हे मानव ! क्यों तुम निष्ठुर हो ?
क्यों स्वार्थ में इतने तत्पर हो ?
क्यों श्वांस को अपनी काट रहे ?
अंतिम दिवस को अपनी की छांट रहे।
इसका अंत कभी ना शुभ होगा।
हर श्वांस-श्वांस दुर्लभ होगा।
है प्रेम प्रकृति से तो रुक जाओ।
इस प्रकृति के आगे झुक जाओ।
यह प्रकृति सहर्ष तुम्हे भी स्वीकारेगी।
अपना सब कुछ तुम पर वारेगी।
इन वनों को अब ना कांटो तुम
क्षण स्वार्थ, इसे ना बांटो तुम।
है मूक पर एक दिन गरजेंगे।
एक दिन तुम पर ही ये बरसेंगे।
इनका जन्मों से हमसे नाता है।
ये प्रकृति हमारी माता है।
अब ना संकट में इसे डालो तुम।
अब 'हसदेव' को अपनी बचालो तुम।-
लुट कर शहर की खुशीया
ये कजाख़ गांवों की ओर पहुंचे हैं
कहीं बंजर न बना दे खुशीयों को
प्रवास इनका।-