प्रवीण रवि   (प्रवीण रवि)
194 Followers · 226 Following

Joined 25 June 2017


Joined 25 June 2017
5 MAR 2024 AT 0:50

© प्रवीण रवि

-


21 JAN 2024 AT 22:38

संघर्ष,प्रतिज्ञा,त्याग,तर्पण
निज जीवन संपूर्ण समर्पण
प्रतीक्षा में लीन कण-कण
व्याप्त वेदना से क्षण-क्षण
रक्त का बुंद-बुंद कर अर्पण,
व्योम,धरा,सरिता,कंकड़

दशों दिशाए अब एक लय में,
नार-नारी सब जगत अभय में
सब लीन हो इस विजय में,
सब एक ही सुर में गाते हैं,
सदियों की बाधाएँ लांघकर,
रामलला अयोध्या आते हैं।

- प्रवीण

-


17 AUG 2022 AT 22:23

जीवन के इस रण में।
पल पल भीषण क्षण में।
सत्य जहाँ मुरझाता है।
झुठ जहाँ इठलाता है।
इस दुविधा की घड़ी में।
क्यूँ झूंझलाना है पथिक।

इस पार का अब मोह त्यागो,
उस पार को जाना है पथिक।

-


5 AUG 2022 AT 23:54

कुछ ख्वाब जो बिखर रहे हैं,
समेटने के उम्मीदों से काफी दुर ,
कुछ है जो अधुरा सा रह गया है भीतर,
एक कसक जो अब भी उठती है।
कुछ पतझड़ जो बसंत हो जाना चाहते थे,
सहमे हुए हैं जेठ की दहलीज पर।

कुछ है जो अब पुरे में भी अधुरा सा है,
कुछ है जो बिसरने की जद में अटका है,
इक अंधेरा जो उजाले को निगलना चाहती है,
इक याद जो माथे पे सिकन बनाती है,
इक उम्मीद जो नाउम्मीदी की दालान से झांकती है।

इक साथ की आस जो अकेलेपन का हो रहा है,
इक तलाश जो स्वयं के लिए रोज होता है,
इक दस्तक जिसकी प्रतीक्षा बरसों से होती है,
इक धैर्य जो उतावला होने के लिए उतावला है,
इक नाव जो बिन खिवइया के बहती है,
इक बस्ती जो बसने की चाह में उजड़ गई,
इक पथिक जो प्रतीक्षा में पाषाण हो गया,
इक राह जो किसी के लौट आने की आहट चाहता है,

कितना कुछ है जो आरंभ और अंत हो जाने के लिए युद्धरत है।
युद्धरत है इक नए सृजन के लिए,इक सुखद अंत के लिए।

-


3 AUG 2022 AT 22:57

कभी-कभी भावनाओं को ना समझ पाने के दुख से परे,
मैं इस बात की खुशी जाहिर करता हूँ कि..
अभी भावनाओं को महसूस कर पाने का विकास
सबके भीतर समान रुप से विकसित नहीं हो पाया है।

-


10 MAY 2022 AT 12:55

जब हम किसी को जाने देने के लिए,
जितने सहज होते जाते हैं।
तब से हम किसी को आने देने के लिए,
उतने कठिन होते जाते हैं।।

-


4 MAY 2022 AT 20:34

अंधकार,तृष्णा,चीख,चित्कार,
मन में उठता व्यथा अपार,
मेरे दृग के करुण पुकार,
बिन बोले सुन पाओगे क्या?
तुम मेरा एकाकीपन चुन पाओगे क्या?

पग-पग पर पसरता मौन,
पथिक को राह बताए कौन?
इन विरान पड़े चित्त में,
कोई ख्वाब बुन पाओगे क्या?
तुम मेरा एकाकीपन चुन पाओगे क्या?

नहीं विरह अब उस विच्छेद का,
ना उस वृतांत,ना उस भेद का,
झंकृत करते उन वेदनाओं से,
थोड़ा सुकुन दे पाओगे क्या?
तुम मेरा एकाकीपन चुन पाओगे क्या?

-प्रवीण रवि

-


28 APR 2022 AT 14:01

मुझे क्या मतलब इन पेड़ों और वनों से,
मैं AC की ठंडी हवाओं में कैद हूँ।

मैं समाज की लड़ाई लड़ता एक अद्भुत संगठन,
अपनी कमीशन ना मिलने तक हर मुद्दों पर मुस्तैद हूँ।

विपक्ष में रहकर करता हूँ विरोध गैर कामों का,
सत्ता आते ही काले कामों पर भी मैं सफेद हूँ..

मैं शांति का भूखा,अशांति पर मौन लिए ।
इस चक्रव्यूह में फंसा स्वयं ही मटियामेट हूँ।

कहलाता हुं सहचर इस पावन प्रकृति का,
दस वृक्ष रोप कर लाखों का करता आखेट हूँ ।

विपक्ष में रहकर करता हूँ विरोध गैर कामों का,
सत्ता आते ही काले कामों पर भी मैं सफेद हूँ...

-प्रवीण रवि

-


21 MAR 2022 AT 19:59

जो कही नहीं जा सकी उसे,
उकेरा गया कोरे पन्नों में !
जो बतलाई ना जा सकी उसे,
सजोया गया टूटती मनों में।

वो सुनापन,वो खालीपन,
जमघट में उमड़ता वीरानापन।
जो छलक ना सके वो अब,
समाए हैं सजल नयनों में ।

प्रतीक्षाओं की आस बांधे,
डाली-डाली झर रहे हैं ।
ये बसंत भी जाने को अब,
आतुर है इन उपवनों में ।

-प्रवीण रवि

-


18 FEB 2022 AT 13:51

अबके बसंत मेरे हिस्से में भी आएगा..!

ऐ पतझड़ तेरी आतुरता बताती है,
के तेरा अंत निकट है..!!

-


Fetching प्रवीण रवि Quotes